Posted on 24-Jun-2016 11:11 AM
जीवन, मरण, लोक, परलोक, स्वर्ग और नरक आदि गूढ़ विषय यदि सद्-साहित्य में तलाशें तो इनके लिए कोई समान सार्वत्रिक नियम नहीं है। परन्तु प्रत्येक जीव की स्कर्मानुसार वभिन्न गति होती है, यही कर्मविपाक का सर्वतंत्र सिद्धांत है। सार यह निकलता है जीव कि कर्मानुसार स्वर्ग और नरक आदि लोकों को भोगकर पुनरपि मृत्युलोक में जन्म धारण करे और दूसरे जिसमें प्राणी जीवत्व भाव से छूटकर जन्म मरण के प्रपंच से सदा के लिए उन्मुक्त हो जाए। वेदादि शास्त्रों में उक्त दोनों गतियों को कई नामों से जाना गया है। श्रीमद् भगवद् गीता के अनुसार देव, मनुष्य आदि प्राणियों की मृत्यु के अनन्तर दो गतियाँ होती है। इस जंगम जगत के प्राणियों की अग्नि, ज्योति, दिन, शुक्ल पक्ष और उत्तरायण से उपलक्षित पुनरावृत्ति-फलक प्रथम गति तथा धूम, रात्रि, कृष्णपक्ष और दक्षिणायन से उपलक्षित पुनरावृत्ति-फलक दूसरी गति अनादि काल से चली आ रही है। इसमें दूसरे मार्ग से प्रयाण करने वाला प्राणी कर्मानुसार पुनः पुनः जन्म मरण के वक्र चक्र में पड़कर आ-ब्रह्मलोक परिभ्रमण करता रहता है, परन्तु प्रथम मार्ग से प्रयाण करने वाला जीव सूर्यमण्डल भेदन करके सर्वदा के लिए जन्म और मरण के बन्धन से छूट जाता है, अर्थात् मोक्ष को प्राप्त हो जाता है।