यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान

Posted on 20-Jun-2016 11:30 AM




एक बार किसी ने बताया कि संत रामानंद स्वामी ने सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लङाई छेड़ रखी है। कबीर उनसे मिलने निकल पङे किन्तु उनके आश्रम पहुँचकर पता चला कि वे मुसलमानों से नही मिलते। कबीर ने हार नही मानी और पंचगंगा घाट पर रात के अंतिम पहर पर पहुँच गये और सीढी पर लेट गये। उन्हे पता था कि संत रामानंद प्रातः गंगा स्नान को आते हैं। प्रातः जब स्वामी जी जैसे ही स्नान के लिये सीढी उतर रहे थे उनका पैर कबीर के सीने से टकरा गया। राम-राम कहकर स्वामी जी अपना पैर पीछे खींच लिये तब कबीर खङे होकर उन्हे प्रणाम किये। संत ने पूछा आप कौन? कबीर ने उत्तर दिया आपका शिष्य कबीर। संत ने पुनः प्रश्न किया कि मैने कब शिष्य बनाया? कबीर ने विनम्रता से उत्तर दिया कि अभी-अभी जब आपने राम-राम कहा मैने उसे अपना गुरुमंत्र बना लिया। संत रामदास कबीर की विनम्रता से बहुत प्रभावित हुए और उन्हे अपना शिष्य बना लिये। कबीर को स्वामी जी ने सभी संस्कारों का बोध कराया और ज्ञान की गंगा में डुबकी लगवा दी। कबीर पर गुरू का रंग इस तरह चढा कि उन्होने गुरू के सम्मान में कहा है

सब धरती कागज करू, लेखनी सब वनराज।

सात समुंद्र की मसि करु, गुरु गुंण लिखा जाए।।

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।

शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।।

देखना ही चाहते हो तो

पीना चाहते हो तो ईश्वर चिन्तन का रस पिओ।

पहनना चाहते हो तो नेकी का जामा पहनो।

करना चाहते हो तो दीन-दुखियों की सहायता करो।

छोड़ना चाहते हो तो झूठ बोलना छोड़ो।

बोलना चाहते हो तो मीठे वचन बोलो।

तोलना चाहते हो तो अपनी वाणी को तोलो।

देखना चाहते हो तो अपने अवगुणों को देखो।


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