Posted on 09-Jun-2016 11:15 AM
गीताजी के चौथे अध्याय के ग्यारहवें श्लोक की दूसरी पंक्ति में श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘लोग भिन्न-भिन्न मार्गों द्वारा प्रयत्न करते हुए अंत में मेरी ही ओर आते हैं।‘‘पंथ‘ अर्थात मार्ग, रास्ता, सड़क, रोड, जो मंजिल तक पहुंचाता है। यहां मंजिल है-धर्म। अब तक की मुख्य और मनोवैज्ञानिक चुनौती यह रही है कि आदमी के अंदर धर्म के इन दस लक्षणों में से अधिक से अधिक को कैसे स्थापित किया जाए। इन्हीं उपायों को गौतम बुद्ध ने अपनी तरह से बताया, तो महावीर स्वामी, गुरुनानक देव, नारायण स्वामी आदि महान एवं पवित्र आत्माओं ने अपनी-अपनी तरह से। ये उपाय ही हैं ‘पंथ‘, जिसे संविधान की प्रस्तावना में ‘विश्वास एवं उपासना‘ कहा गया है। ‘पंथ‘ को हम धर्म तक पहुंचने का विधान कह सकते हैं, पद्धति कह सकते हैं।