Posted on 23-May-2015 02:55 PM
अपनी विशेष आकृति और रहस्यों के साथ शनि मानव जिज्ञासा का कारण रहा है।
सन् 1610 ई. में वैज्ञानिक गैलीलियो ने सबसे पहले इसके चारों ओर अज्ञात सी चीज देखी, बाद की खोजों से पता चला शनि ग्रह के चारों ओर वलय हैं वे कैसे और क्यों बने? इसके बारे में अब तक कोई सर्वमान्य खोज, जवाब या वैज्ञानिक अवधारणा नहीं है, क्योंकि अब तक इस बारे में जानने की कोशिशें जारी हैं।
एक और खास बात 15 साल के अंतर से शनि के वलय गायब हो जाते हैं यानि वे दिखाई नहीं देते क्योंकि शनि और पृथ्वी परम्पर सूर्य से ऐसे कोण में होते है कि शनि के वलयों से सूर्य की रोशनी परावर्तित नहीं होती, वलय केवल सूर्य के प्रकाश के परावर्तन की वजह से चमकते दिखाई देते हैं।
बृहस्पति के बाद हमारे सौर-मंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है। इसका व्यास 120,536 किलोमीटर और इसका आकार हमारी पृथ्वी से 95 गुणा बड़ा है।
इसमें 94 प्रतिशत हाइड्रोजन ओर करीब 6 प्रतिशत हीलियम है। इस पर मीथेन, अमोनिया और पानी की भाप का कोहरा छाया रहता है।
शनि के वलय अनगिनत बर्फ और धूल कण से बने हैं।
शनि अपने अक्ष पर 26.7 डिग्री झुका है, और पृथ्वी के 10 घंटे 40 मिनट की अवधि में अपना घूर्णन पूरा कर लेता है, यही उसके दिन रात की पूरी अवधि है इसका तापमान माइनस 292 डिग्री सेंटीग्रेड है।
शनि आकार के मुकाबले बेहद कम घनत्व वाला ग्रह है, इसे यूं समझें कि अगर वह टेनिस की गेंद जितना हो तो पानी से भरी बाल्टी में तैरता ही रहेगा, डूबेगा नहीं।
भारत में शनि को सदियों से क्रूर और अशुभ ग्रह कहा गया हैं ये रहस्य भी है और मान्यता भी कि ज्योतिष के अनुसार ये मानव जीवन पर भी अच्छा बुरा प्रभाव डालना है।