Posted on 15-Jan-2016 02:36 PM
जीवन काक स्वरूप इन्द्र-धनुष के समान है, और पूरे जीवन में विभिन्न रंगों की भांति विभिन्न स्थितियां आती हैं, जो कि सुख और दुःख स्वरूप हैं। इस जीवन को आप किस प्रकार से जीना चाहते हैं, यह आप पर निर्भर करता है।
साधारण व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों के संबंध में चर्चा करते हैं, उनसे श्रेष्ठ व्यक्ति स्थितियों, कार्यों की चर्चा करते हैं, अत्यन्त श्रेष्ठ व्यक्ति विचारों का चिन्तन करते हैं।
यह जीवन आपका है,
और यदि आप हैं - तो सब कुछ है, इसी दृष्टिकोण को ध्यान में हर समय रखते हुए चिन्तन करें।
आशा अवश्य रखें, लेकिन अपेक्षा नहीं, जब भी आप अपने किसी प्रियजन से किसी वस्तु को प्राप्त करने की निश्चित अपेक्षा ही रखते हैं, और वह प्राप्त नहीं होती, तो बहुत अधिक मानसिक पीड़ा होती है।
दुःखी एवं निराश चेहरा रखने से भी तो कार्य पूरा नहीं हो सकता, अथवा पीड़ा कम नहीं हो सकती, अथवा संकट नहीं टल सकता, तो फिर अपने चेहरे से अपनी पीड़ाओं को सारी दुनिया के सामने क्यों प्रकट करते हो ? आपके चेहरे को देख कर, कोई भी दया कर आपका कार्य पूरा नहीं करेगा, जिससे कार्य पूरा हो सके, उसी के सामने निवेदन करें, अन्य सभी के सामने अपने मन में भावों को चेहरे के माध्यम से बाहर न आने दें।
कोई भी कार्य करने से पहले उसके विपरीत पक्ष को भी अवश्य सोच लें, यह संभव है, कि आप अपने प्रयत्नों द्वारा श्रेष्ठ परिणाम ही प्राप्त करेंगे, लेकिन यदि विपरीत परिणाम भी मिल गया तो क्या होगा ? इसका विचार करना आवश्यक है।