Posted on 07-Aug-2016 12:37 PM
इन्द्रियाँ अग्नि की तरह हैं। तुम्हारा जीवन अग्नि के समान है। इन्द्रियों की अग्नि में जो कुछ भी डालते हो, जल जाता है। यदि तुम गाड़ी का टायर जलाते हो, तो दुर्गन्ध निकलती है और वातावरण दूषित होता है। परन्तु यदि तुम चन्दन की लकड़ी जलाते हो, तो चारों ओर सुगन्ध फैलती है। कोई अग्नि प्रदूषण फैलाती है और कोई अग्नि शोधन करती है। ’बोन फायर’ के चारों ओर बैठकर उत्सव मनाते हैं और चिता की अग्नि के चारों ओर शोक मनाते हैं। जो अग्नि शीतकाल में जीवन को सहारा देती है, वही अग्नि विनाश भी करती है। तुम भी अग्नि की तरह हो। क्या तुम वह अग्नि हो जो वातावरण को धुएँ और गन्दगी से दूषित करती है या कपूर की वह लौ जो प्रकाश और खुशबू फैलाती है ? सन्त कपूर की वह लौ हैं जो रोशनी फैलाते हैं, प्रेम की ऊष्णता फैलाते हैं। वे सभी जीवों के मित्र हैं। उच्चतम श्रेणी की अग्नि प्रकाश और ऊष्णता फैलाती है। मध्यम श्रेणी की अग्नि थोड़ा प्रकाश तो फैलाती है, मगर साथ ही थोड़ा धुआँ भी। निम्न श्रेणी की अग्नि सिर्फ धुआँ और अँधकार फैलाती है। विभिन्न प्रकृति की अग्नियों को पहचानना सीखो। यदि तुम्हारी इन्द्रियाँ भलाई में लगी हैं, तो तुम प्रकाश और सुगन्ध फैलाओगे। यदि बुराई में लगी हैं, तुम धुआँ और अन्धकार फैलाओगे। ’संयम’ तुम्हारे अन्दर की अग्नि की प्रकृति को बदलता है।