Posted on 21-Jun-2016 02:22 PM
योग की भाषा में सांस को कूर्म नाड़ी कहा जाता है। कूर्म नाड़ी आपको एक जीव के रूप में शरीर के इस भौतिक रूप से बांधती है। शरीर सिर्फ उन चीजों का एक ढेर है, जो हमने खाया और इकट्ठा किया है। यह सिर्फ धरती का एक टुकड़ा है, जिसे हमने जमा किया है मगर अभी यह आपके रूप में काम कर रहा है क्योंकि यह बहुत अच्छी तरह बंधा हुआ है। कूर्म नाड़ी ही वह धागा है जो आपको शरीर से बांधता है। अगर मैं आपकी सांस बाहर निकाल लूं, तो आप और आपका शरीर अलग-अलग हो जाएंगे। फिलहाल आप सांसों को नहीं जानते इसलिए किसी आध्यात्मिक प्रक्रिया में सांस की अहमियत यही है कि यह आपको उस बिंदु या उस आयाम तक ले कर जाती है, जहां भौतिक और अभौतिक, स्थूल और सूक्ष्म एक साथ मिलते हैं, जहां स्थूल और सूक्ष्म आपस में बंधे हुए हैं, अगर आप सांस को जानते हैं। अभी आप सांस को नहीं जानते, फिलहाल आप हवा के आने-जाने से पैदा हुई हलचल को ही जानते हैं। यह सांस नहीं है। अंग्रेजी भाषा में यह ब्रेथ या सांस है, मगर यह कूर्म नहीं है। कूर्म नाड़ी उस हवा से कहीं अधिक है, जिसमें आप सांस ले रहे हैं मगर उस हवा के बिना वह घटित नहीं होगी। हवा का रास्ता महत्वपूर्ण है मगर यह उसी तक सीमित नहीं है। यह अस्तित्व की जीवनी सांस है, जिसे आप ले रहे हैं और छोड़ रहे हैं। अगर इसे बाहर निकाल लिया जाए, तो आप और आपका शरीर साथ नहीं रह पाएंगे। वे अलग-अलग हो जाएंगे। भौतिक और अभौतिक की संधि इसलिए अपनी कूर्म नाड़ी के साथ यात्रा करना उस जगह को ज ा न न े क ी ए क कोशिश है, जहां भौतिक और अभौतिक मिलते हैं- उस संधि क्षेत्र में होना जहां आप भौतिक में होते हैं मगर भौतिक के परे एक आयाम को छूते हैं दृ उस संधि क्षेत्र तक पहुंचने की कोशिश की जाती है। शांभवी महामुद्रा इसीलिए होती है। शांभवी का मतलब उस संधि क्षेत्र में होना है। भौतिक से अभौतिक तक का संधि क्षेत्र होता है। इंसान की आकांक्षा होती है कि वे भौतिक में जमे रहकर जो परे है, उसका स्वाद ले सकें। इस तरह से सांस महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि सांस वहां तक पहुंचने के सबसे आसान उपकरणों में से एक है। ऐसा करने के दूसरे तरीके भी हैं, मगर दूसरे तरीकों के लिए बहुत ज्यादा ध्यान रखने, निर्देश, मार्गदर्शन और सहायता की जरूरत पड़ती है। सांस की प्रक्रिया से यह काफी आसानी से घटित हो जाती है, उतने उल्लेखनीय तरीके से नहीं मगर निश्चित रूप से काफी आसानी से। यही वजह है कि सांस इतनी महत्वपूर्ण चीज है।
साभार- ईशा फाउंडेशन