महर्षि वेदव्यास

Posted on 11-Jun-2015 12:58 PM




सत्यवती ने यमुना में विकसित हुए एक छोटे- से- द्वीप पर वेद व्यास को जन्म दिया। श्याम वर्ण होने के कारण उनका नाम कृष्ण रखा गया तथा द्वीप पर जन्म लेने के कारण उन्हें कृष्ण द्वैपायन कहा जाने लगा। जन्म लेते ही व्यासजी बड़े हो गए और सत्यवती से बोले - ”माता! मैं अपने जन्म के उद्देश्य को सार्थक करने के लिए तपस्या करने जाता हूँ। आप कठिन परिस्थिति में जब भी मेरा स्मरण करेंगी, मैं उसी क्षण आपकी सेवा में उपस्थित हो जाऊँगा।“
कृष्ण द्वैपायन तपस्या में लग गए और द्वापर युग के अंतिम चरण में वेदों का सम्पादन करने में जुट गए। वदों का विस्तार करने से उनका एक प्रसिद्ध नाम ’वेद व्यास’ पड़ गया।
वेदों का संकलन और संपादन करने के बाद महर्षि व्यास के मन में एक ऐसे महाकाव्य की रचना करने का विचार उत्पन्न हुआ, जिससे संसार लाभान्वित हो सके। वे ब्रह्माजी के पास गए और उनसे मागदर्शन करने की प्रार्थना की।
व्यासजी का ध्येय जानकर ब्रह्माजी प्रसन्न होकर बोले- ”वत्स! तुम्हारा विचार अति उत्तम है। परंतु पृथ्वी पर ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं है जो तुम्हारे ग्रंथ को लिखित रूप प्रदान कर सके। अतः आप गणेशजी की उपासना करके उनसे प्रार्थना करें कि वे इस कार्य में आपकी सहायता करें।“
व्यासजी ने विध्नहर्ता भगवान् गणेश की स्तुति की तो वे साक्षात् प्रकट हो गए। तब व्यासजी ने उनसे अपने ग्रंथ के लिपिक बनने की प्रार्थना की। गणेशजी बोले -”मुनिवर! मुझे आपका प्रस्ताव स्वीकार है लेकिन याद रहे; मेरी लेखनी एक पल के लिए भी रुकनी नहीं चाहिए।“
व्यासजी बोले-”ऐसा ही होगा भगवान्! परंतु आप भी कोई श्लोक तब तक नहीं लिखेंगे जब तक कि आप उसका अर्थ न समझ लें।“
गणेशजी ने शर्त स्वीकार कर ली। इस प्रकार, महर्षि व्यास ने एक महान महाकाव्य की रचना की जो संसार में महाभारत के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
व्यासजी बोले-”ऐसा ही होगा भगवान्! परंतु आप भी कोई श्लोक तब तक नहीं लिखेंगे जब तक कि आप उसका अर्थ न समझ लें।“
गणेशजी ने शर्त स्वीकार कर ली। इस प्रकार, महर्षि व्यास ने एक महान महाकाव्य की रचना की जो संसार में महाभारत के नाम से प्रसिद्ध हुआ।


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