श्री कृष्ण ही आकर्षण का केन्द्र

Posted on 01-May-2015 04:01 PM




’कृष्ण’ का मतलब जो सबसे अधिक आकर्षक है - वह शक्ति जो सब कुछ अपनी ओर खींचती है। कृष्ण वह निराकार केन्द्र है जो सर्वव्यापी है। कोई भी आकर्षण, कहीं से भी हो, कृष्ण से ही है।
प्रायः व्यक्ति आकर्षण के मूल सत्व को नहीं देख पाते और बाहरी आवरण में उलझे रहते हैं। और जब तुम बाहरी आवरण को प्राप्त करने की चेष्टा करते हो, कृष्ण तुम्हें चकमा देते हैं और तुम्हारे हाथों में रह जाता है खोखला आवरण और आखों में आँसू।
राधा की तरह चतुर बनो, कृष्ण की छल में मत आओ। कृष्ण राधा से दूर हो ही नहीं सके क्योंकि राधा की पूरी सृष्टि ही कृष्णमय थी। अगर तुम हर आकर्षण में कृष्ण को देख सको, तब तुम राधा ही हो, अपने आप में केन्द्रित हो।
मन सौन्दर्य, आनन्द व सत्य की ओर बढ़ता है। कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, ’’मैं सुन्दरता में सौैन्दर्य हूँ, सशक्त में शक्ति हूँ और ज्ञानी में ज्ञान हूँ।’’ इस प्रकार वे मन को अपने से दूर भटकने से रोकते हैं।
-श्री श्री रविशंकर जी


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