Posted on 08-Jun-2015 04:19 PM
भगवान बुद्ध के एक शिष्य विनायक को जरूरत से ज्यादा बोलने की आदत थी। इसी आदत की वजह से वह खूब जोर-जोर से बोलकर भीड़ एकत्र करते और फिर धर्माेपदेश देते। श्रद्धालुओं ने तथागत से शिकायत की। एक दिन तथागत ने विनायक को बुलाया और बातों-बातों में बड़े प्रेम से पूछा, “भिक्षु, अगर कोई ग्वाला सड़क पर निकली गायों को गिनता रहे तो क्या वह उनका स्वामी बन जायेगा ?”
“नहीं भंते! सिर्फ गायों को गिनने वाला उनका स्वामी कैसे हो सकता है? उनका वास्तविक स्वामी तो वह होता है जो उनकी देखभाल और सेवा में जुटा रहता है।”
तथागत बोले “तो तात! धर्म को जीभ से नहीें, बल्कि जीवन से बोलकर सिखाओ और प्रजा की सेवा में तन्मयता पूर्वक जुटे रहकर उन्हें धर्म संदेश दो।”
विनायक ने कहा “आपकी आज्ञा शिरोधार्य है। अब वाणी से नहीं, कर्म से धर्म संदेश दूँगा। ”