Posted on 04-Jun-2015 12:18 PM
लंका पर चढ़ाई करने की पूरी तैयारी हो गई। पुल बनाने का काम जोर-शोर से आरंभ हो गया। धीरे-धीरे पत्थरों की कमी होने लगी। हनुमान राम से बोले, “नाथ! आपकी आज्ञा हो तो मैं जाकर हिमालय पहाड़ का एक पर्वत खंड ही उठा लाऊं।”
राम बोले, “हनुमान, मैं इस विषय में सोच ही रहा था। दिन-दिन प्रस्तर खण्ड की कमी होती जा रही है। भय है कि एक दिन पुल का काम रूक न जाए। अतः हे पवनसुत, तुम जाओ और हिमालय के उत्तरखंड से उसका एक भाग ले आओ। यह कार्य जल्द ही तुम्हें पूरा करना होगा। पुल का काम रूकने न पाए।”
हनुमान वायु वेग से हिमालय की ओर बढ़ गए और झटपट एक विशाल पर्वत खण्ड उठाने लगे।
बार-बार जोर लगाया पर वह विशाल खण्ड हिला तक नहीं। पर्वत खण्ड कहने लगा, “तुम मुझे उठाकर क्यों ले जाना चाहते हो ?मैं कोई छोटा-मोटा पर्वत खण्ड तो नही हूँ।ं कि गाजर-मूली की तरह उखाड़ो और चलते बनो। मैं पर्वतराज हिमालय का एक खण्ड हूँ।”
हनुमान जी ने कहा, “भाई, यह तो मैं जानता हूँ। बात यह है कि श्रीरामचंद्र जी सीता माता के उद्धार हेतु लंका पर चढ़ाई करना चाहते हैं। लंका जाने के लिए रामेश्वर पुल का निर्माण कार्य चल रहा है। पत्थर की कमी हो गई है। मैं चाहता हूं कि तुम वहाँ चलो। वहाँ तुम्हारे दो काम बनेंगे। प्रभु के दर्शन होंगे और तुम्हारी सहायता से पुल भी बन जाएगा।”
पर्वत खंड बोला, “पवनसुत, अगर आपने यह बात पहले बता दी होती तो अब तक आपका काम आसानी से हो गया होता। अच्छा चलो, मैं फूल की तरह हल्का हो जाता हूं। अपनी उंगली पर उठा लों और जल्दी वहाँ पहुँच जाओ जहाँ पुल का निर्माण हो रहा है।” हनुमान जी ने सोचा कि इस बड़े पहाड़ खण्ड से एक फायदा यह होगा कि छोटे-मोटे पत्थरों की जगह इसे ही रख दिया जाएगा। पुल का काम फिर जल्दी ही समाप्त हो जाएगा। राम अपनी सेना के साथ लंका पहंुच जाएंगे और रावण का काम तमाम कर सीता माता का उद्धार करेंगे। सत्य की विजय होगी। ऐसा सोचकर वे पर्वत खण्ड को ले उड़े और आनन-फानन में वहां पहुंचे, जहां पुल का निर्माण हो रहा था। उन्होंने पर्वत खण्ड को एक जगह रखा और पुल की ओर देखा। उन्होंने पाया कि रामेश्वर सेतु का निर्माण पूरा हो गया है। अब इस पर्वत खण्ड की कोई आवश्यकता नहीं है।
हनुमानजी पर्वत खण्ड से बोले, “अरे भाई, अब तो तुम्हारी आवश्यकता ही नहीं रही।”
पर्वत खण्ड निराशा से बोला, “आपने तो प्रभु दर्शन कराने का वायदा किया था और अब कहते हो कि तुम्हारी आवश्यकता ही नहीं रही। मैं असहाय अब क्या करूं? एक तो मैं अपनी जगह छोड़ आया और इधर आकर अनावश्यक हो गया। मैं तो कहीं का न रहा।”
पर्वत खण्ड की बात सुनकर हनुमान जी एक क्षण तक मौन रहे। लगा कि वे प्रभु ध्यान में लीन हो गए। फिर बोले, “भाई, तुम चिंता मत करो। राम की कृपा तुम्हारे ऊपर है। स्मरण रखो, भगवान के दरबार में देर तो होती है पर अंधेर नहीं होती। त्रेतायुग के बाद द्वापर युग आ रहा है। द्वापर युग में राम जी कृष्ण के रूप में आएंगे। बाल कृष्ण तुम्हारे नीचे अनेक बाल लीलाएं करेंगे। वे अपने चरणों से तुम्हें पूर्णरूपेण पवित्र कर देंगे।”
हनुमानजी की बात सुनकर वह हिमालय खण्ड प्रसन्न हो गया। हनुमान ने उसे ब्रजभूमि में ले जाकर स्थापित कर दिया। द्वापर युग में वही गोवर्धन पर्वत कहलाया। अपनी पूजा बंद होने से कुपित होकर देवताओं के राजा इंद्र ने ब्रजभूमि को पानी के नीचे डुबोकर नष्ट कर देने के लिए वरूण देव का आह्वान किया। वरूण देव आए। इंद्र की आज्ञा से वे दिन-रात पानी बरसने लगे। कृष्ण ने ब्रजवासियों को बचाने का प्रण लिया। वे सबको लेकर गोवर्धन पर्वत पर आए। पर्वत खण्ड पवित्र हो गया। उसने मन ही मन वीर हनुमान को प्रमाण किया, जिनके कारण उसे यह सुनहरा अवसर मिला। तब से गोवर्धन पर्वत सभी का पूज्य हो गया। आज भी भक्त मंडली इस पहाड़ की परिक्रमा कर अपना जीवन सफल बनाती है। लोग घोष करते हैं, ‘जय कृष्ण, जय गोवर्धन।’
संपूर्ण ब्रह्मांड परमात्मा के संकल्प का परिणाम है। इसीलिए संसार में संकल्प का महत्व है।