Posted on 30-Jul-2015 03:11 PM
एक मार्ग दमन है तो दूसरा उदारीकरण का, दोनों ही मोर्गों में अधोगामी वृतियां निषेध है। भागवत को सुनने से पाप कट जायेंगे, जैसे कि गोकर्ण ने कथा कही, किन्तु उसके दुराचारी भाई धुंधकारी ने मनोयोग से उसे सुना और उसको मोक्ष प्राप्त हो गया। कई लोगों ने प्रश्न किया कि जब प्रेतयोनि वाले धुंधकारी को मोक्ष मिल गई और हमको क्यों नहीं? उत्तर मिला धुंधकारी ने कथा मनोयोग से सुनी, आपने नहीं, भक्ति हार्दिकता का नाम है। वह औपचारिकता या कर्मकाण्ड नहीं। भागवत कथा का केन्द्र है आनंद, आनंद की तल्लीनता में पाप का स्पर्श भी नहीं हो पाता। नियम बनाया गया है कि कथा सुनते समय काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, मान, ईष्र्या तथा द्वेष से सदा दूर रहें, देखें आपका जीवन भी सदाचार वृत को धारण करके समाज में सद्व्यवहार तथा सत्यता का पालन करने पर धुंधकारी की तरह मोक्ष को प्राप्त होता है, अथवा नहीं। हम कथा सुनते समय सर्वदा -दूसरे -दूसरे ध्यान में तथा व्यर्थ के वार्तालाप में लगे रहते हैं और कथा समाप्त होते ही अपना पल्ला झाड़कर अपने नित्यकर्मों में जो कैसे ही हो, लग जाते हैं। कथा में आपने क्या सुना, क्या समझा, इसका आपको पता ही नहीं होता। भागवत कथा एक ऐसा अमृत है कि इसका जितना भी पान किया जाए तब भी तृप्ति नहीं होती । भक्ति के दो पुत्र हैं-ज्ञान, दूसरा वैराग्य, भक्ति बड़ी दुखी थी, उसके दोनों पुत्र वृद्धावस्था में आकर भी सोये पड़े हैं। वेद वेदान्त का घोल किया गया, किन्तु वे नहीं जागे, यह बड़ा विचित्र और विचार का विषय है, भक्ति बड़ी दुखी थी कि यदि वे नहीं जागे तो यह संसार गर्त में चला जायेगा। भागवतकार के समक्ष यह चुनौती रही होगी कि वेद पाठ करने पर भी आत्मज्ञान नहीं और वेदांत के पाठ करने पर वैराग्य नहीं जगा। इसे ही गीता में भगवान कृष्ण ने मिथ्याचार कहा है, भागवत कथा सुनते ही ज्ञान और वैराग्य जाग जाये। अतः जो कथा ज्ञान और वैराग्य जगाये वह पाप में कैसे ढकेल सकती है? भागवत कथा पौराणिक होती है। नारद जी ने भक्ति सूत्र की व्याख्या करते हुए भी भक्ति को प्रेमारूपा बताया है। वह अमृत रूपणी है जिसे पाकर मनुष्य कृतकृत्य हो जाता है फिर वह कुछ और न चाहता है, न राग, न रंग। वह मस्त होकर स्तब्ध हो जाता है। अतः भक्ति की व्याख्या अद्भुत् है। इस सबका शोध श्रीभगवत कथा का महात्म्य है।