Posted on 13-Jun-2015 02:42 PM
गीता-ज्ञान जानने का परिणाम है-’वासुदेवः सर्वम्’ का अनुभव हो जाना। इसके अनुभव में ही गीता की पूर्णता है। यही वास्तविक शरणागति है। तात्पर्य है कि जब भक्त शरीर-इन्द्रियाँ-मन-बुद्धिसहित अपने-आपको भगवान् के समर्पित कर देता है, तब शरणागत (मैं-पर) नहीं रहता, प्रत्युत केवल शरण्य (भगवान्) ही रह जाते हैं, जिनमें मैं-तू-यह-वह चारों का ही सर्वथा अभाव है। इसलिये जब कोई महात्मा गीता को जान लेता है, तब वह मौन हो जाता है। उसके पास कुछ कहने या लिखने के लिये शब्द नहीं रहते।