Posted on 22-Jun-2016 02:15 PM
’ऊँ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं
भर्गों देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्’
इस गायत्री महामंत्र में ’ऊँ’ परमात्मा का पावन नाम और सभी तरह की जीवन-साधनाओं व शक्तियों का परम कारण है। ’भूर्भुवः स्वः’ की तीन व्याहृतियों मंे प्रकृति के तीनों गुण-तम, रज व सत् के साथ जीवन-साधन के तीन तत्त्वों-कर्म, ज्ञान व भक्ति की अभिव्यक्ति होती है।
इसके पश्चात गायत्री महामंत्र के नौ शब्दों का क्रम है। इनमें से
पहला शब्द (1) तत् है। जो देवी के प्रथम रूप ’शैलपुत्री’ के साथ जीवन-साधना में स्थिरता के महत्त्व को दरसाता है। इस शब्द में पर्वतीय पर्यावरण के संरक्षण का महान संदेश भी है।
दूसरा शब्द-(2) सवितुः है। इसमें देवी के द्वितीय रूप् ’ब्रह्मचारिणी’ की शक्ति निहित है। साथ ही इसमें
जीवन-साधन में पवित्रता के महत्त्व को भी दरसाया गया है। इसमें प्रकृति व उसके घटकों में सार्वभौमिक ब्रह्मस्वरूपिणी एकता का संदेश समाहित है।
तीसरा शब्द (3) वरेण्यं है। इसमें प्रकृति की आहर््हादकारिणी शक्ति ’चंद्रघंटा’ निहित है। इसमें जीवन-साधना में एकाग्रता के महत्त्व को बताया गया है। साथ ही इसमें प्रकृति के सभी जीवों के सुख को संवर्द्धित करने का संदेश है।
गायत्री महामंत्र का चैथा शब्द -(4) भर्गों है। इसमें प्रकृति का चैथा स्वरूप ’कूष्मांडा’ निहित है। इसमें जीवन-साधना में संयम का महत्त्व बताया है। ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली देवी कूष्मांडा के इसी रूप में त्रिविध आपदाओं और प्रकृति प्रकोप का संचालन तंत्र समाया है। इसमें प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन का संदेश है।
इस क्रम में पाँचवाँ शब्द -(5) देवस्य है। इसमें देवी प्रकृति के पाँचवें रूप ’स्कंदमाता’ की शक्ति है। साथ ही जीवन-साधना के ’सदाचार’ तत्त्व के महत्त्व का वर्णन है। इसमें प्रकृति व जीवों के जीवन में माता व संतान के संबंधों की मधुरता की अनुभूति करने का संकेत है।
छठा शब्द -(6) धीमहि है। इसमें देवी की ’कात्यायनी’ महाशक्ति निहित है। इस छठे रूप में जीवन-साधना के स्वाध्याय तत्त्व का महत्त्व बताया गया है। साथ ही प्रकृति का संरक्षण करने वाले ऋषियों की जीवनशैली अपनाने का संदेश भी दिया गया है।
अगले क्रम में गायत्री महामंत्र का सातवाँ शब्द -(7) धियो है। इसमें प्रकृति के सातवें स्वरूप ’कालरात्रि’ या महाकाली की शक्ति निहित है। साथ ही इसमें जीवन-साधना में समर्पण के तत्त्व का महत्त्व भी समाहित है। प्रलय व विध्वंस की शक्ति भी यही है। प्रकृति को समर्पित जीवन जीने का संदेश इसमें है। ऐसा करने पर प्राकृतिक कोप स्वतः स्वतः शांत हो जाते हैं।
आठवाँ शब्द (8) यो नः है इसमें देवी ’महागौरी’ की शक्ति समायी है। इस शब्द में जीवन-साधना के परिष्कार तत्त्व का महत्त्व है। इसमें यह संदेश भी है कि यदि मनुष्य अपनी अंतःप्रकृति का परिष्कार कर ले तो बाह्म प्रकृति स्वतः ही वरदायिनी हो जाती है।
अब नौवाँ शब्द (9) प्रचोदयात् है। इसमें देवी प्रकृति की’सिद्धिदात्री’ महाशक्ति निहित है। साथ ही इसमें जीवन-साधना के परोपकार तत्त्व का महत्त्व भी है। इस शब्द में यह संदेश है कि जो मनुष्य परोपकार को अपना लेता है, प्रकृति उसके जीवन के सभी कार्यों को सिद्ध करने वाली सिद्धिदात्री बन जाती है।