ध्यान के लिए आसन अनिवार्य

Posted on 05-Jun-2016 09:47 AM




भारत के ऋषियों ने जीवन के रहस्यों को जाना, उन्हें सुरक्षित रखा और आने वाली पीढ़ी को संप्रेषित किया। उनके द्वारा खोजी गई ये पद्धतियां धर्म, अध्यात्म और योग के नाम से आज भी प्रचलित है। प्रेक्षा-ध्यान उनमें से एक खोजी गई अभिनव पद्धति है, जिसमें अध्यात्म विज्ञान की विकसित शाखाओं का समुचित उपयोग किया गया है। प्रेक्षा पद्धति आज सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि उसमें सिद्धांत की नीरस चर्चा की अपेक्षा प्रयोग का प्राणवान सुयोग है। इसमें किसी को मानने के लिए बाध्य नहीं किया जाता अपितु जानने का प्रशिक्षण दिया जाता है। परिणामतः प्रेक्षा-शिविरों में सामान्य जन से लेकर उच्च शिक्षित व्यक्ति भी समान रूप से अभिरूचि प्रदर्शित करते हैं। प्रेक्षाध्यान में आसन, प्राणायाम, मुद्रा और यौगिक क्रियाओं का महत्वपूर्ण स्थान होता है। जब तक आसन नहीं सधता, मुद्रा ठीक नहीं हो सकती और न ही ध्यान की पूर्व तैयारी ही हो सकती है क्योंकि बिना आसन साधना में बैठ जाने वाला शरीर स्थिर नहीं रह पाता। जबकि कायोत्सर्ग की पहली शर्त है- शरीर की स्थिरता। दूसरी शर्त है-शिथिलता। स्थिरता और शिथिलता इन दोनों के बिना कायोत्सर्ग पूर्ण नहीं होता। आसन की सिद्धि कायोत्सर्ग और चैतन्य के प्रति जागरूकता के बिना नहीं हो सकती है क्योंकि चित्त शरीर की अस्थिरता और चंचलता में ही अटक कर रह जाता है। प्राणायाम श्वास- प्रेक्षा का आधार है। मुद्राओं का भावों के साथ सीधा सम्बंध होता है। ‘जैसा भाव, वैसी मुद्रा और जैसी मुद्रा, वैसा ही भाव।‘ दोनों में अन्योन्याश्रय संबंध है। ध्यान के लिए आसन, मुद्रा, प्रायाणम और योगिक क्रियाओं के अभ्यास की आवश्यकता होती है।


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