Posted on 28-Jul-2016 12:38 PM
अकसर यह सवाल सबके मन में आता है कि भगवान श्रीकृष्ण के भांजे और अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु महाभारत के युद्ध में सबसे पहले वीरगति को क्यों प्राप्त हुए ? इसके पीछे एक रोचक कथा है। इसी कथा में यह भी पता लगता है कि किन देवताओं और राक्षसों ने नया जन्म लेकर महाभारत का युद्ध लड़ा। जब भगवान विष्णु ने पृथ्वी माता की करुण पुकार सुनी तो उन्हें वचन दिया कि शीघ्र ही वे कृष्ण अवतार लेंगे और कंस सहित सभी राक्षसों और अन्य दुष्ट लोगो का वध करेंगे। तब ब्रह्मा जी की आज्ञा से सभी देवताओं और दानवों ने भी मनुष्य रूप में जन्म लिया। कालनेमि दैत्य ने कंस, दानवराज विप्रचित्ति ने जरासंध तो शिशुपाल के रूप में हिरण्यकश्यपु ने जन्म लिया। बृहस्पति के अंश से द्रोणाचार्य तो रुद्र के एक गण ने कृपाचार्य के रूप में जन्म लिया। कलियुग के अंश के रूप में जन्म लिया दुर्योधन ने तो शकुनि द्वापर युग के अंश के रूप में जन्मा। पुलस्त्य वंश के राक्षसों ने ही उसके भाइयों के रूप में जन्म लिया। अश्वत्थामा तो महादेव, यम, काल और क्रोध के मिश्रण अंश से पैदा हुआ था। वसु गंगापुत्र भीष्म के रूप में पैदा हुए थे। ऐसे ही धर्म के अवतार रूप में युधिष्ठिर, भीम देव, अर्जुन इंद्र, कर्ण सूर्य और नकुल-सहदेव अश्विनी कुमारों के अंश से पैदा हुए तो अग्निदेव धृष्टद्युम्न के रूप में धरती पर आए। लेकिन जब चंद्रमा से कृष्णावतार में मदद करने को कहा गया तो उन्होंने निराशा से कहा-मैं अपने प्राणों से प्यारे पुत्र वर्चा को भूलोक नहीं भेजना चाहता। लेकिन वर्चा मनुष्य बनेगा तो सही, पर अधिक दिनों तक वहां नहीं रहेगा। इंद्र के अंश से पैदा हुए अर्जुन ही वर्चा के पिता होंगे। नर नारायण के मौजूद न रहने पर मेरा पुत्र चक्रव्यूह का भेदन कर सायंकाल में मुझ से आ मिलेगा। साथ ही इसकी पत्नी से जो पुत्र होगा, वही कुरुकुल का वंशधर होगा। चंद्रमा की इन सभी बातों को देवताओं ने स्वीकार कर लिया। चंद्रमा के पुत्र वर्चा ने अभिमन्यु रूप में गर्भ में युद्ध विद्या की शिक्षा प्राप्त की। ’चंद्रमा मनसो जायते’ अर्थात चंद्रमा मन है। यही बात उनके पुत्र वर्चा अर्थात् अभिमन्यु में भी देखी जा सकती है।