Posted on 02-Jun-2015 11:58 AM
अत्यन्त जटिल पर्यवेक्षणों द्वारा यदि प्रतिभाशाली से भी प्रतिभाशाली वैज्ञानिक मस्तिष्कों ने सदियों तक अध्ययन करने के पश्चात् इन विभिन्न अवयवों के व्यवहार और उनकी सत्ता को पहचाना है, तो उससे सीधा परिणाम यह निकलता है कि जिस एक की बुद्धि ने इन सबकी पहले पहल रचना की, वह आज तक की मानवीय बुद्धि के एकत्रित मूल्य से भी कहीं अधिक मूल्यवान और उन सबसे कहीं अधिक बड़ी है। आज तक के अत्यन्त ग्रहणशील मस्तिष्क भी यह बात तुरन्त स्वीकार करेंगे कि प्रकृति प्रपंच के सम्बन्ध में जितना कुछ जानने को है, उसका श्रीगणेश ही अब तक मुश्किल से हो पााया है।
जब हम जीवन के उच्चतम रूपों में आते हैं तब हम देखते हैं कि किसी कार्यविधि को पूरा करने में या उसकी योजना बनाने में वे ऐसी बुद्धि का प्रदर्शन करते हैं, जो ’प्राकृतिक नियमों’ के विपरीत भी हो सकती है। तत्त्वों के एक स्थान पर एकत्र हो जाने से अकस्मात् ही ऐसा हो गया या इस प्रकार के प्राणियों का निर्माण और योजना किसी सृजनशील कर्ता के बिना ही हो गयी और उनमें तर्क, बुद्धि और अपने वंश को बढ़ाने के लिए प्रजनन क्रिया आदि बातों का स्वयं समावेश हो गया - यह सर्वथा असम्भव है। उस एक शक्ति को मानने से इन्कार करके उक्त कल्पना को प्रश्रय देने से कभी किसी क्रियात्मक प्रयोजन का सिद्ध होना असम्भव है। काफी दूर तक पीछे लौटने पर मनुष्य अन्त में इस परिणाम पर पहुँचेगा कि प्राकृतिक नियमों की विद्यमानता जो विश्व में क्रमबद्धता का वर्णन करती है, किसी ऐसे बुद्धिमान की सूचक है जिसने विश्व के कार्यकलापों को उस ढंग से स्थापित करने का निर्णय किया, जैसा कि हम देखते हैं। सृष्टि की विलक्षणता और संचालन की शाश्वतता किसी विशिष्ट बुद्धिमान और किसी महान् सत्ता की तरफ संकेत ही नहीं कर रही है अपितु उसके अस्तित्त्व की गवाही दे रही है। भले ही सृष्टि का सम्पूर्ण संचालन स्वतः ही होता दिख रहा है, परन्तु संचालन को गति देने वाली और इस विलक्षण सृष्टि का प्रारुप तैयार करने वाली सत्ता को हम परमात्मा कह सकते हैं और वह है, जिसके अस्तित्त्व से ही सबका अस्तित्त्व है। अन्त में इस परिणाम पर पहुँचेगा कि प्राकृतिक नियमों की विद्यमानता जो विश्व में क्रमबद्धता का वर्णन करती है, किसी ऐसे बुद्धिमान की सूचक है जिसने विश्व के कार्यकलापों को उस ढंग से स्थापित करने का निर्णय किया, जैसा कि हम देखते हैं। सृष्टि की विलक्षणता और संचालन की शाश्वतता किसी विशिष्ट बुद्धिमान और किसी महान् सत्ता की तरफ संकेत ही नहीं कर रही है अपितु उसके अस्तित्त्व की गवाही दे रही है। भले ही सृष्टि का सम्पूर्ण संचालन स्वतः ही होता दिख रहा है, परन्तु संचालन को गति देने वाली और इस विलक्षण सृष्टि का प्रारुप तैयार करने वाली सत्ता को हम परमात्मा कह सकते हैं और वह है, जिसके अस्तित्त्व से ही सबका अस्तित्त्व है। से ही सबका अस्तित्त्व है।
विश्व के मूल की खोज करते हुए विज्ञान ने यह बताया है कि कैसे आणविक भौतिकी के वर्तमान ज्ञान के आधार पर बुनियादी कणों की अन्तःक्रियाएँ समस्त ज्ञात तत्त्वों के ढाँचे की व्याख्या कर सकती है। अलबत्ता इस बात की व्याख्या नहीं की जा सकती कि प्रोटोन का उद्गम कैसे हुआ और उसमें ये विशेष गुण कहाँ से आए ? उद्गम की मूल सत्ता -परमात्मा में विश्वास करना ही पड़ेगा।