पंचायती राज ने बदली गांवों की सूरत

Posted on 14-May-2015 02:14 PM




पंचायती राज व्यवस्था ने ग्रामीण भारत की सूरत बदली है। लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत बनाने और जन-जन तक सुशासन के लाभ पहुंचाने में पंचायती राज का योगदान अहम है। बापू के ग्राम स्वराज के सपनों को साकार करने के लिए लागू की गई इस व्यवस्था को राजीव गांधी का कार्यकाल मंे और अधिकार संपन्न बनाया गया। वहीं 1993 में हुए 73वें संशोधन में पंचायतों को संवैधानिक दर्जा मिला।
बलवंत राय मेहता आयोग से हुई शुरुआत
1957 में तत्कालीन नेहरू सरकार ने पंचायती राज को स्थापित करने के लिए बलवंत राय मेहता आयोग का गठन किया।
1958 में आयोग की सिफारिशों की राष्ट्रीय विकास परिषद ने अपनी मंजूरी दी।
नागौर ने रचा इतिहास
02 अक्टूबर 1959 में मेहता आयोग की सिफारिशों के आधार पर राजस्थान के नागौर जिले में स्थापित हुई पहली पंचायत 
03 स्तरीय पंचायत में ग्राम पंचायत, ब्लाॅक पंचायत और जिला पंचायत स्थापित, पांच साल पर होते हैं चुनाव
1993 में बनी संवैधानिक इकाई
24 अप्रैल 1993 में 72 वें संविधान संशोधन के बाद पंचायती संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा मिला
08 राज्यों के आदिवासी इलाकों में भी इस संवैधानिक संशोधन में पंचायती राज व्यवस्था लागू हुई
04 राज्यों (नगालैंड, मेघालय, मिजोरम और दिल्ली) को छोड़ पूरे देश में पंचायती राज है।
अधिकार व जिम्मेदारी 
ग्राम पंचायत: आर्थिक विकास और सामाजिक विकास की योजनाओं का निर्माण, संविधान की 11वीं सूची में उल्लेखित 29 विषयों का क्रियान्वन और कर आदि का संग्रह।
ब्लाॅक पंचायत: कृषि विकास की योजनाओं का क्रियान्वयन, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और स्कूल की स्थापना, पेयजल का इंतजाम, युवा संगठनों की स्थापना
जिला पंचायत: जिले की ग्रामीण आबादी को मूलभूत सेवाएं उपलब्ध कराना, महामारी की स्थिति में टीकाकरण, सड़क पुल जैसेे लोक निर्माण के कार्यों को पूरा करना
महिलाओं को प्राथमिकता
27 अगस्त 2009 को केंद्र सरकार ने पंचायतों में 50 फीसदी सीटंे महिलाओं के लिए आरक्षित की।
मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश पहले से था आरक्षण।


Leave a Comment:

Login to write comments.