Posted on 27-Apr-2015 05:55 PM
सम्राट चन्द्र्रगुप्त मौर्य ने एक दिन अपने प्रतिभाशाली किन्तु कुरूप प्रधानमन्त्री चाणक्य से कहा-’कितना अच्छा होता अगर आप गुणवान होने के साथ-साथ रूपवान् भी होते।’
पास ही खड़ी महारानी ने चाणक्य को मौका दिए बगैर तुरन्त ही जवाब दिया--’महाराज रूप तो मृगतृष्णा है। आदमी की पहचान तो गुण और बुद्धि से होती है, रूप से नहीं।’
’आप रूपवती होकर भी ऐसी बात कर रही हैं ?’ सम्राट् ने प्रश्न किया- ’क्या ऐसा कोई उदाहरण है जहाँ गुण के सामने रूप फीका दीखे ?’
’ऐसे तो अनेक उदाहरण हैं, महाराज!’ चाणक्य ने जवाब दिया, ’पहले आप पानी पीकर मन को हल्का करें, फिर बातें करेंगे।’ उन्होंने दो गिलास बारी-बारी से राजा की ओर बढ़ा दिये।
’महाराज! पहले गिलास का पानी इस सोने के घड़े का था और दूसरे गिलास का पानी काली मिट्टी की उस मटकी का था। अब आप बतावें, किस गिलास का पानी आपको मीठा और स्वादिष्ट लगा ?’ सम्राट् ने जवाब दिया-’मटकी से भरे गिलास का पानी शीतल और स्वादिष्ट लगा एवं उससे तृप्ति भी मिली।’
महारानी ने मुस्कराकर कहा-’महाराज! हमारे प्रधानमन्त्री ने बुद्धिचातुर्य से आपके प्रश्न का जवाब दे दिया। भला यह सोने का खूबसूरत घड़ा किस काम का, जिसका पानी बेस्वाद लगता है। दूसरी ओर काली मिट्टी से बनी यह मटकी, जो कुरूप तो लगती है लेकिन उसमें गुण छिपे हैं। उसका शीतल-सुस्वादु पानी पीकर मन तृप्त हो जाता है। अब आप की बतला दें कि रूप बड़ा है अथवा गुण एवं बुद्धि ?’