एक बार ऐसा हुआ, बुद्ध ने अपने शिष्यों से पूछा-’’क्या तुम कोई ऐसी चीज खोज सकते हो जो जीवन में पूरी तरह व्यर्थ हो यदि ढूँढ सकते हो तो उसे अपने साथ ले आना।’’ शिष्य कई नों तक सोचते रहे और बुद्ध उनसे प्रतिदिन पूछते ’’क्या हो रहा है? क्या त
सनाका रोम के महान दार्शनिक और सम्राट नीरो के गुरू थे। उन्होंने नीरो को सम्राट बनाने में उसकी माँ की मदद भी की थी। नीरो को शक हो गया कि उसके राजगुरू सनाका उसके विरुद्ध षड्यंत्र कर रहे हैं। नीरो ने सनाका को राजदरबार में नस काटकर बूँद-बूँद रक्त के बहने से होने वाली मौत की
पंचवटी में रावण की बहन शूर्पणखा ने आकर राम से प्रणय निवेदन किया। श्री राम ने यह कह कर कि वे अपनी पत्नी के साथ हैं और उनका छोटा भाई अकेला है, उसे लक्ष्मण के पास भेज दिया। लक्ष्मण ने उसके प्रणय निवेदन को अस्वीकार करते हुए शत्रु की बहन जानकर उसके नाक और कान काट लिये। शूर्पणखा ने खर-दूषण से सहायता की
एक गुरूकुल के दो शिष्य अपने गुरू के साथ नदी स्नान को गए। स्नानोपरांत दोनों ध्यान लगाकर बैठ गए। अचानक उन्हें एक डूबते बालक की आवाज सुनाई पड़ी। सुनते ही एक शिष्य पूजा छोड़कर नदी में कूद गया और डूबते बालक को बचा ले आया, परंतु दूसरा शिष्य पूजा ही करता रहा। उनके गुरू सारी घटना के साक्षी थे। उन्होंने उसस
अस्ताचल को जाते हुए सूर्य भगवान से एक छोटे से दीपक ने कहा -आप सम्पूर्ण विश्व को प्रकाश देते हैं, आप महान हैं, मैं आपको शत्-शत् प्रणाम करता हूँ। सूर्य नारायण बोले! नहीं-नहीं, बंधुवर! ऐसा नहीं है, मैं कुछ भी कर लूँ मगर तुमसे कम हूँ- मैं कभी किसी गरीब की अन्धेरी कोठरी को प्रकाशमान नहीं कर सकता-तुम उ
भगवान बुद्ध धर्म प्रचार के लिये भ्रमण पर थे। गांव के लोग उनसे उपदेश लेने पहुंचने लगे। सब लोग अपनी-अपनी समस्याएं लेकर उनके पास जाते और उनसे हल प्राप्त कर नई ऊर्जा के साथ लौटते। गांव के बाहर एक गरीब रास्ते में बैठा रहता था। गरीब ने सोचा क्यों ना मैं भी भगवान के पास अपनी समस्या लेकर जाऊँ ? हिम
दत्तात्रेय जी कहते हैं पाँचवा गुरु मैंने अग्नि को बनाया। प्रकृति की हर वस्तु, हर कण अपने भीतर गुण-अवगुण को रखे हुए है। बुद्धिमान वो नहीं जो उनके गुण-अवगुण का ज्ञाता हो अपितु वो मनुष्य बुद्धिमान है जो अपने लिए लाभप्रद सदगुणों को प्राप्त करके दुर्गुणों की तरफ दृष्टि नहीं डालता है। संग्रह अर्थात् प्
एक नौजवान व्यापारी अपनी लगन और कठोर परिश्रम के चलते शहर का सबसे धनी और सम्मानित व्यक्ति बन गया, लेकिन धीरे-धीरे वह घमंडी और लापरवाह हो गया, उसे व्यापार में घाटा हुआ और वह कर्जदार हो गया। एक दिन हताश और निराश एक पार्क में बैठा था। वहां एक बुजुर्ग ने उसकी चिंता का कारण पूछा। उसने अपनी पूरी स्थिति ब
किसी वृद्ध और किसी युवा में कोई मौलिक अंतर नहीं होता, क्योंकि दोनों अपनी ही आकांक्षाओं और परितुष्टिओं के दास होते है। परिपक्वता का आयु से कुछ लेना-देना नहीं होता है। वह तो सूझबूझ से आती है। युवाओं मे जिज्ञासा की उत्कंठ भावना शायद बहुत सहज रूप मंे होती है, क्योंकि वयोवृद्ध लोगों का तो जीवन चूर-चूर
गौतम को ऐसी अनुभूति हुई जैसे हजारों योनियों के कारागार से मुक्ति मिल गई हो। इस कारागार का द्वारपाल था अज्ञान। इस अज्ञान के कारण ही उनका चित्ताकाश तिमिराच्छन्न था। ठीक वैसे ही जैसे झंझावात में सघन मेघों से चन्द्रमा और तारे छिप गए थे। अज्ञान में डूबे विचारों की असंख्य लहरों से वास्तविकता का सत्य, क