Posted on 04-Aug-2016 12:01 PM
एक बार ऐसा हुआ, बुद्ध ने अपने शिष्यों से पूछा-’’क्या तुम कोई ऐसी चीज खोज सकते हो जो जीवन में पूरी तरह व्यर्थ हो यदि ढूँढ सकते हो तो उसे अपने साथ ले आना।’’ शिष्य कई नों तक सोचते रहे और बुद्ध उनसे प्रतिदिन पूछते ’’क्या हो रहा है? क्या तुम अभी तक पूरी तरह व्यर्थ कोई चीज नहीं खोज पाएँ ?’’ एक या दो महीने बाद एक शिष्य उनके पास आकर बोला-’’भगवान मुझे खेद है। मैंने चारों ओर देखा, बहुत सख्ती और सावधानी से देखा। मैं ठीक से भी नहीं देख सका क्योंकि आपने जो प्रश्न हल करने को दिया था, मुझे उसका उत्तर खोजना था। लेकिन मैं पूरी तरह से व्यर्थ कोई चीज खोज न सका।’’ तब बुद्ध ने कहा - अब एक दूसरी बात है। कोई भी ऐसी चीज खोजो, जो कीमत रखती हो, तुम्हें इसे खोजने के लिए कितने दिन चाहिए? पहली चीज को खोजने में तो तुम्हें महिनों लग गए। वह शिष्य हस पड़ा। उसने कहा- ’’अब समय लेने की आवश्यकता ही नहीं है।’’ उसने भूमि से एक तिनका उठाया और उसे बुद्ध को देकर कहा-’’यह ही पर्याप्त प्रमाण है। इसकी भी कीमत है।’’ बुद्ध ने उस शिष्य को आशीर्वाद देते हुए कहा-’’इसी तरह प्रत्येक व्यक्ति को यह जीवन देखना चाहिए। यही ठीक दृष्टिकोण है- सम्यक् दृष्टि’’ और बुद्ध ने कहा-’’मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ कि तुमने दो महिने के लिए और फिर भी तुम कोई भी व्यर्थ या मूल्यहीन वस्तु न खोज सके। तुम्हें ऐसा एक उदाहरण न मिला जिससे किसी चीज की अर्थहीनता प्रकट होती। ओर सब अर्थपूर्ण के लिए, उसके लिए जिसकी कुछ कीमत हो, तुमने एक क्षण भी नहीं लिया। हाँ, जितना भी जो कुछ है, वह यही है। यह पूरा जीवन की पवित्र और धार्मिक है।’’