Posted on 09-Jul-2016 12:00 PM
एक गुरूकुल के दो शिष्य अपने गुरू के साथ नदी स्नान को गए। स्नानोपरांत दोनों ध्यान लगाकर बैठ गए। अचानक उन्हें एक डूबते बालक की आवाज सुनाई पड़ी। सुनते ही एक शिष्य पूजा छोड़कर नदी में कूद गया और डूबते बालक को बचा ले आया, परंतु दूसरा शिष्य पूजा ही करता रहा। उनके गुरू सारी घटना के साक्षी थे। उन्होंने उससे पूछा-वत्स, क्या तुमने उस बालक की पुकार नहीं सुनी थी ? वह शिष्य बोला, गुरूदेव, सुनी तो थी, परंतु पूजा मध्य में कैसे छोड़ सकता था ? छोड़ने पर क्या मैं पाप का भागी नहीं होता ? गुरू बोले, दुर्भाग्य है वत्स कि इतने वर्ष धर्मशास्त्र का अध्ययन करने के बाद भी तुम धर्म का सार नहीं समझ पाए। धर्म का सार थोथे कर्मकांड में नहीं, बल्कि पीड़ित मानवता की सेवा करने में है। सच्चे धर्म का पालन तो दूसरे शिष्य ने किया है।