Posted on 11-May-2015 11:28 AM
भीष्म पितामह शर-शैय्या पर सोए हुए युधिष्ठिर आदि को उपदेश दे रहे थे। द्रौपदी भी उन्हीं में उपस्थित थी। पितामह की बातें सुनते हुए द्रौपदी को अपने अपमान की वह स्थिति स्मरण हो आई जब कौरवों की भरी सभा में दुःशासन चीरहरण कर रहा था। भीष्म भी वहाँ उपस्थित थे। उसने मन ही मन सोचा कि पितामह का यह ज्ञान उस समय कहाँ गया था? उसके चेहरे पर आये भाव-परिवर्तन का कारण पूछने पर उसने बिना संकोच के क्षमा याचना के साथ अपनी बात कह दी। भीष्म ने कहा-’बेटी उस समय दुर्योधन के दूषित आहार के नीचे मेरा ज्ञान दब गया था। अब अर्जुन के बाणों से निकले लहू के साथ उस आहार का प्रभाव बह गया है। अब ज्ञान शुद्ध हो चुका है।