Posted on 28-Apr-2015 11:47 AM
एक बार वाराणसी के राजा ब्रह्मदत्त अपनी कमियाँ और दोष ढूँढ़ने के लिए उत्तर भारत के कई नगरों में गए। उन्हें उनके दोष बताने वाला कहीं कोई नहीं मिला। अंत में राजा ब्रह्मदत्त बोधिसत्व के पास पहुँचे। बोधिसत्व ने राजा से कुशल-क्षेम पूछा और कहा कि वह पेड़ांे से मनचाहे फल तोड़कर खा लेें। राजा ने एक वृक्ष को देखा, वह फलों से लदा था। उसने पेड़ से पके फल तोेड़े और कुछ पके, मीठे फल खाकर बोधिसत्व से पूछा, ‘‘क्या कारण है कि ये फल बहुत मीठे हैं?’’
बोधिसत्व ने उत्तर दिया, ‘‘निश्चय ही देश का राजा धर्मानुसार, न्यायपूर्वक राज्य करता है। उसी से ये फल मीठे हैं। राजा के अधार्मिक होते ही मधु, शक्कर और जंगल के फल अमधुर हो जाते हैं।’’