Posted on 13-May-2015 02:05 PM
एक बार स्व॰ लालबहादुर शास्त्री से उनके एक मित्र ने पूछा, ’शास्त्री जी, आप हमेशा प्रशंसा से दूर रहा करते हैं और आदर-सत्कार के कार्यक्रमों को टाला करते हैं। ऐसा क्यों?’
शास्त्री जी ने हँसकर जवाब दिया, ’मित्र! इसका यह कारण है कि एक बार लाल जी (लाला लाजपतराय) ने मुझ से कहा था, ’लालबहादुर! ताजमहल बनाने में दो प्रकार के पत्थरों का उपयोग हुआ है-एक बहुमूल्य संगमरमर पत्थर, जिसका उपयोग गुम्बज के लिये और यत्र-तत्र भी किया गया है तथा दूसरा एक साधारण पत्थर, जिसका ताजमहल की नींव में उपयोग किया गया है और जिसकी ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। लालबहादुर! हमें अपने जीवन में इस दूसरे प्रकार के पत्थर का ही अनुकरण करना चाहिये। अपनी प्रसिद्धि, प्रशंसा और आदर-सत्कार से हमेशा दूर रहकर सत्कर्म करते रहना चाहिये।’ बस, उनकी यह सीख मेरे मन में बैठ गयी और मैं उस नींव के पत्थर का अनुकरण करता रहता हूँ।’