Posted on 13-Jun-2015 02:09 PM
जब द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था। रणक्षेत्र में एक जापानी सैनिक की कराह सुनकर भारतीय सैनिक उसके पास गया..........देखा कि घायल सैनिक के शरीर से काफी रक्त बह चुका है............. शायद वह बच भी न पाये.......... उसकी दशा देख भारतीय सैनिक का हृदय द्रवीभूत हो उठा। उसकी मानवीय संवेदना ने उसे झकजोंरा। शत्रु है तो क्या मरते को पानी देना बड़ा धर्म है। उसने कमर से लटकी कैतली से उसे पानी पिलाया।
घायल सैनिक की हालत कुछ संभली तो उसे भारतीय शिविर के सैन्य अस्पताल भी उसने पहुँचाया............. बाद में वह उसकी कुशलक्षेम पूछने भी गया। तब जख्मी जापानी सैनिक ने कहा.........दोस्त अब मुझे समझ में आया कि ’बुद्ध’ जैसे देवदूत भारत में ही क्यों जन्म लेते हैं। बन्धुओं! यदि आप और हम भूखे को भोजन और प्यासे को पानी पिलाते हैं तो इससे अतीव सुख की अनुभूति होगी....चैरासी लाख योनियों में विचरण के बाद हमने मानव देह
पाई है। अतएव हर हाल में मानव धर्म का पालन कर ........आत्म कल्याण को सुनिश्चित करना होगा। दीन-दुःखी, असहाय औेर निःशक्त जन की सेवा का कोई मौका गँवाना नहीं चाहिए। संसार में उसी मनुष्य का जीवन धन्य है........जो सेवा से युक्तहै और जो हृदय में अपने को सेवक तथा जगत में जो कुछ है ............सब को प्रभु की प्रतिमूर्ति मानता है।