Posted on 19-Sep-2015 02:50 PM
महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के संग जंगल से गुजर रहे थे। दोपहर को एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने रुके। उन्होंने शिष्य से कहा, “प्यास लग रही है, कहीं पानी मिले, तो लेकर आओ।“
शिष्य एक पहाड़ी झरने से लगी झील से पानी लेने गया। झील से कुछ पशु दौड़कर निकले थे, जिससे उसका पानी गंदा हो गया था। उसमें कीचड़ ही कीचड़ और सड़े पत्ते बाहर उभरकर आ गए थे। शिष्य पानी लिए बिना ही लौट आया।उसने तथागत से कहा कि झील का पानी निर्मल नहीं है, मैं दूर वाली नदी से पानी ले आता हूं।
बुद्ध ने उसे उसी झील का पानी ही लाने को कहा। शिष्य फिर खाली हाथ लौट आया। पानी अब भी गंदा था, बुद्ध ने शिष्य को फिर वापस भेजा। तीसरी बार शिष्य पहुंचा, तो झील बिल्कुल निर्मल और शांत थी। कीचड़ बैठ गया था और जल स्वच्छ हो गया था। जब वह निर्मल जल लेकर वापस लौटा, तो महात्मा बुद्ध ने उसे समझाया कि यही स्थिति हमारे मन की भी है।
जीवन की दौड़-भाग मन को भी विक्षुब्ध कर देती है, मथ देती है। पर यदि कोई शांति और धीरज से उसे बैठा देखता रहे, तो सारी कीचड़ अपने आप नीचे बैठ जाती है और सहज निर्मलता का आगमन हो जाता है। इससे शिष्य को जीवन का महत्वपूर्ण सबक मिल गया।
शिक्षा:-
संयम के साथ विचार करने पर किसी भी समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।