Posted on 01-May-2015 03:48 PM
चीन के महान् नेता माओत्से तुंग ने अपनी जीवनी में लिखा कि मेरे घर में एक बगीचा था। वह इतना सुन्दर था कि लोग देखने आते थे। एक बार माँ बीमार पड़ गई। बीमारी मंे भी अपने से ज्यादा माँ को बगीचे की चिन्ता थी कि खिले फूल मुरझा न जायँ। माओत्से तुंग ने माँ से कहा- तूं चिन्ता मत कर, मैं बगीचे की देखभाल कर लूँगा। माँ के स्वस्थ होने तक माओ ने बगीचे की पूरी देखभाल की लेकिन न जाने कैसे फूल मुरझाते गए और सारा बगीचा सूखने लगा।
ठीक होने पर बूढ़ी माँ बगीचे में आई तो यह देख कर निराश हुई कि बगीचा तो उजड़ गया। माओ से माँ ने पूछा-तूं क्या करता रहा पन्द्रह दिनों तक ? तूने खाने-पीने की फिक्र भी नहीं रखी, फिर यह कैसे हुआ ? माओ ने कहा - मैंने बहुत फिक्र की। एक-एक पत्ते की धूल झाड़ी और एक-एक फूल पर पानी छिड़का। फिर भी न जाने कैसे..?
माओ ने लिखा- बगीचे को देखकर उदास माँ मेरी हालत पर हँसने लगी और प्यार से गले लगा कर कहा-पागल! फलों के प्राण फूलों में नहीं, उनकी जड़ों में होते हैं। फिक्र जड़ों की करनी पड़ती है, पत्तियों और शाखाओं की नहीं। माओ ने जिज्ञासावश पूछा-लेकिन माँ जड़ें हैं कहाँ ? वे तो दिखाई नहीं पड़ी। इसी प्रकार हम सभी पूछते हैं कि जीवन कहाँ है ? वह दिखाई तो नहीं पड़ता। असल में जीवन बाहर नहीं है। वह अपने ही भीतर है। जरूरत केवल अन्तर्यात्रा की है।