Posted on 25-Apr-2015 10:40 AM
जहां पसीना अधिक और एकत्रित हो जाय।
उसी अंग पर दाद का रोग फैलता जाय।।
चर्म रोगों के अन्तर्गत आने वाला यह प्रदाहिक रोग है। इस रोग को फैलाने वाले, फुंगी नामक जीवाणु होते हैं। यह रोग आसानी से नहीं जाता। यह रोग ज्यादातर, जांघों, सिर में, कन्धों, दाढ़ी, पैरों, नितम्ब, नाखून, हाथ, पाॅव तथा बगल में और छाती पर होता है। यानि जहां पसीना ज्यादा हो, वहां यह रोग होता है।
दाद का संक्रमण अलग अलग जलवायु, रहन-सहन, खान-पान पर निर्भर करता है। यह शरीर के किसी भी भाग पर हो सकता है। पसीने से भरी बालदार त्वचा पर यह अधिक होता है। जिन स्थानों पर पसीना रहता है दाद वहीं पर अपना प्रभाव छोड़ता है। पशुओं के सम्पर्क में रहने वालों में ज्यादा पाया जाता है। रक्त की खराबी के कारण भी होता है। आयुर्वेद में दाद को कुष्ठ रोग की श्रेणी में गिना जाता है। यह एक प्रकार से छूत का रोग है।
घरेलू चिकित्सा-
1. कपूर और गन्धक बराबर मिलाकर लगाएँ। 2. सुहागा और नीबू पीसकर लगाएँ।
3. तुलसी का पंचाग नीबू में घोटकर लगाएँ। 4. मेहन्दी की पत्तियां पीसकर लगाएँ।
5. चने बराबर नीला थोथा, दही में मिलाकर लगाएँ। 6. शक्कर में घी मिलाकर लगाएँ।
7. अमलताश की पत्तियां पीसकर लगाएँ। 8. चमेली के तेल में नीबू का रस मिलाकर लगाएँ।
करे सफाई देह की, प्रतिदिन जो नर नार।
चर्म रोग होंगे नहीं, आयुर्वेद विचार।।
गीला कपड़ा भूल कर , पहने जो नादान।
चर्म रोग पकडे उसे, ऋषि मुनियों का ज्ञान।।