Posted on 09-May-2015 01:58 PM
एक रात स्वप्न में देवी लक्ष्मी ने एक सेठ को दर्शन दिए और कहा, ‘सेठ, तुम्हारा पुण्य शीघ्र समाप्त होने वाला है। उसके बाद मैं यहां से चली जाऊंगी। इसलिए यदि तुम्हें कुछ मांगना हो तो अभी मुझसे मांग लो।’ सेठ ने लक्ष्मी जी से हाथ जोड़कर कहा कि वह अपने परिवार के सदस्यों से सलाह करने के बाद जो मांगना होगा, अगली रात मांग लेगा।
अगले दिन सेठ ने अपने परिवार के सभी सदस्यों को एकत्र किया और उनसे स्वप्न के बारे में चर्चा की। बड़े पुत्र ने हीरे-मोती और महल आदि मांगने को कहा। बीच वाले पुत्र ने स्वर्ण मुद्राएं और अपार राशि मांग लेने को कहा। छोटे पुत्र ने सुझाव दिया कि हमें लक्ष्मी जी से अन्न का भंडार मांगना चाहिए। इसी प्रकार बड़ी सेठानी और उसकी पुत्रवधुओं ने भी अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार कुछ न कुछ अलग ही मांगने को कहा। अंत में सबसे छोटी पुत्रवधू की बारी आई तो उसने आदरपूर्वक अपने ससुर से कहा, ‘पिताजी, जब लक्ष्मी ही चली जाएंगी तो ये वस्तुएं किस प्रकार हमारे पास रहेंगी’ इसलिए यदि आपको मांगना हे तो आप यह मांगिए कि हमारे परिवार मंे सदैव प्रेम बना रहे।’ रात के समय लक्ष्मी ने फिर स्वप्न में दर्शन दिए तो सेठ ने हाथ जोड़कर कहा, ‘हे देवी ! हमारे परिवार में सब एक-दूसरे का आदर करें और हम प्रेम की डोर में बंधे रहें।’ लक्ष्मी जी मुस्कुराईं और बोलीं, ‘फिर तो मुझे यहीं रहना पड़ेगा।’