कोमल हृदय - सरदार वल्लभ भाई पटेल

Posted on 24-Jan-2016 03:11 PM




आठ - दस विद्यार्थी वकालत पढ़ रहे थे। ये सभी मित्र एक ही मकान में साथ-साथ रहते थे। जिस मकान में ये सब किराये पर रहते थे, उसमें मकान मालिक ने एक नौकर भी रखा था वह मकान की देखभाल तो करता ही था, साथ-साथ इन सभी विद्यार्थियों की भी सेवा करता था। अचानक इस नौकर की पत्नी छः महीने का एक बालक छोड़ कर परलोक सिधार गयी। वह व्यक्ति तो अपने आप को ही सँभालने की स्थिति में नहीं था, फिर बालक को कैसे सँभालता। ऐसी स्थिति में इन विद्यार्थियों मंे से एक विद्यार्थी आगे आया, उसने उस नन्हे बालक को अपनी गोद में उठा लिया और अपने साथियों से कहा - ’जो व्यक्ति दिन रात हमारी सेवा करता है, उसके इस असहाय बालक की देख-भाल करना हमारा धर्म है। अतः मैंने निश्चय किया है कि अपनी पढ़ाई के साथ-साथ इस बालक की देख-भाल भी मैं स्वयं करूँगा।’ रात्रि में वह विद्यार्थी उस बालक को अपने पास ही लेकर सोता, मल-मूत्र होने पर रात में उठकर स्वयं साफ करता और भूख लगने पर दूध आदि पिलाने की भी व्यवस्था करता। वह विद्यार्थी जब तक वहाँ रहा, उसने उस बालक की देख-भाल वैसे ही प्रेमपूर्वक की जैसे कि एक माँ अपने शिशु की करती है। सरदार वल्ल्भभाई पटेल ही वह विद्यार्थी थे। लौह-पुरूष तो वे थे ही, परंतु हृदय के भी वे कितने कोमल थे, यह तो वे ही लोग जानते हैं जो थोड़े दिन भी उनके साथ रहे हैं। सँभालता। ऐसी स्थिति में इन विद्यार्थियों मंे से एक विद्यार्थी आगे आया, उसने उस नन्हे बालक को अपनी गोद में उठा लिया और अपने साथियों से कहा - ’जो व्यक्ति दिन रात हमारी सेवा करता है, उसके इस असहाय बालक की देख-भाल करना हमारा धर्म है। अतः मैंने निश्चय किया है कि अपनी पढ़ाई के साथ-साथ इस बालक की देख-भाल भी मैं स्वयं करूँगा।’ रात्रि में वह विद्यार्थी उस बालक को अपने पास ही लेकर सोता, मल-मूत्र होने पर रात में उठकर स्वयं साफ करता और भूख लगने पर दूध आदि पिलाने की भी व्यवस्था करता। वह विद्यार्थी जब तक वहाँ रहा, उसने उस बालक की देख-भाल वैसे ही प्रेमपूर्वक की जैसे कि एक माँ अपने शिशु की करती है। सरदार वल्ल्भभाई पटेल ही वह विद्यार्थी थे। लौह-पुरूष तो वे थे ही, परंतु हृदय के भी वे कितने कोमल थे, यह तो वे ही लोग जानते हैं जो थोड़े दिन भी उनके साथ रहे हैं। असहाय बालक की देख-भाल करना हमारा धर्म है। अतः मैंने निश्चय किया है कि अपनी पढ़ाई के साथ-साथ इस बालक की देख-भाल भी मैं स्वयं करूँगा।’ रात्रि में वह विद्यार्थी उस बालक को अपने पास ही लेकर सोता, मल-मूत्र होने पर रात में उठकर स्वयं साफ करता और भूख लगने पर दूध आदि पिलाने की भी व्यवस्था करता। वह विद्यार्थी जब तक वहाँ रहा, उसने उस बालक की देख-भाल वैसे ही प्रेमपूर्वक की जैसे कि एक माँ अपने शिशु की करती है। सरदार वल्ल्भभाई पटेल ही वह विद्यार्थी थे। लौह-पुरूष तो वे थे ही, परंतु हृदय के भी वे कितने कोमल थे, यह तो वे ही लोग जानते हैं जो थोड़े दिन भी उनके साथ रहे हैं। अपने पास ही लेकर सोता, मल-मूत्र होने पर रात में उठकर स्वयं साफ करता और भूख लगने पर दूध आदि पिलाने की भी व्यवस्था करता। वह विद्यार्थी जब तक वहाँ रहा, उसने उस बालक की देख-भाल वैसे ही प्रेमपूर्वक की जैसे कि एक माँ अपने शिशु की करती है। सरदार वल्ल्भभाई पटेल ही वह विद्यार्थी थे। लौह-पुरूष तो वे थे ही, परंतु हृदय के भी वे कितने कोमल थे, यह तो वे ही लोग जानते हैं जो थोड़े दिन भी उनके साथ रहे हैं। 


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