Posted on 30-Apr-2015 02:49 PM
रामकृष्ण परमहंस के पास एक उत्साही युवक आया और उनके चरणों में झुककर प्रणाम करने लगा, ‘‘महात्मन। मुझे अपना चेला बना लिजिए। मुझे गुरुमंत्र की दीक्षा दीजिए।’’
परमहंस मुस्कुरा उठे। उन्होंने पूछा, ‘‘नवयुवक तुम्हारे
परिवार में कौन-कौन है? क्या तुम अकेले हो?’’
युवक ने उत्तर दिया, ‘‘महाराज घर-बार में और तो कोई नहीं, बस एक बूढ़ी माँ है।’’
परमहंस थोड़ा क्रुद्ध हो गए। उन्होंने युवक से पूछा, ’’तुम मुझ से गुरु-मंत्र लेकर साधु क्यों बनना चाहते हो?’’
युवक बोला-- ‘‘में इस मोह-माया भरे संसार से मुक्ति चाहता हूँ।’’
राम कृष्ण परमहंस ने कहा, ‘‘अपनी बेसहारा माँ को असहाय छोड़कर तुम्हें मुक्ति नहीं मिलेगी। तुम्हारी सच्ची मुक्ति तो इसी में है कि तुम पूरी शक्ति और इच्छा से अपनी बूढ़ी माँ की सेवा करो। इसी मंे तुम्हारा कल्याण है। संभवतः इसी मार्ग पर चलकर तुम्हें मुक्ति भी मिल जाए।’’