Posted on 29-Jun-2015 02:34 PM
भगवान बुद्ध ने जब बता दिया कि चार महीने बाद वह परिनिर्वाण प्राप्त कर लेंगे, तो विहार में रहने वाले भिक्षु व्यथित हो उठे। सभी की आंखों में आंसू थे। धम्माराम नामक भिक्षु न व्यथित हुआ और न रोया। वह उसी समय से गहरे ध्यान में खोया रहने लगा। सबसे मिलना जुलना बंद कर एकांतवास करने लगा। भिक्षु उससे पूछते, सुस्त क्यों हो? वह उनकी बात का उत्तर नहीं देता। साथी भिक्षुओं को लगा कि साधना के अभिमान में धम्माराम उनकी उपेक्षा कर रहा है। भिक्षुओं में सुगबुगाहट होने लगी। कुछ गौतम बुद्ध के पास पहंुचे और उनको धम्माराम के अपमानजनक व्यवहार के बारे में बताया।
भगवान बुद्ध ने धम्माराम से स्नेह से पूछा, तुमने अन्य भिक्षुओं से बात करना बंद क्यों कर दिया? धम्माराम ने कहा, भगवन, आपके परिनिर्वाण का पता चलते ही मुझे लगा कि यदि आपके रहते मैं मुक्ति की साधना पूरी नहीं कर पाया तो दूसरी दिव्य ज्योति कहां से खोज पाऊंगा? मैं अपना एक पल भी आंसू बहाने या बातचीत में नहीं गंवाना चाहता। इसलिए हमेशा ध्यान कर मुक्त होने की कला साधना चाहता हूं।
भगवान बुद्ध ने यह सुना, तो हतप्रभ रह गए। उन्होंने कहा, भिक्षुओ! धम्माराम ने मेरे उपदेश के इस सार को हृदयंगम कर लिया है कि जो जन्म लेता है, उसे अवश्य मरना पड़ता है। यह मेरी मृत्यु को याद कर क्यों रोए? यही सच्चा भिक्षु है।