पूजा क्यों करते हैं ?

Posted on 23-Jun-2015 12:21 PM




पूजा का मतलब एक ही है -इंसानी गुणों का विकास, इंसानी कर्म का विकास, इंसानी स्वभाव का विकास। आपने जो समझ रखा है कि पूजा के आधार पर यह मिलेगा, वह मिलेगा, यह सारी गलतफहमी इसलिए हुई है। पूजा केे आधार पर वस्तुतः दयानतदारी मिलती है, शराफत मिलती है, ईमानदारी मिलती है। आदमी को ऊँचा दृष्टिकोण मिलता है। अगर आपने गलत पूजा की होगी, तब आप भटक रहे होंगे। पूजा आपको इस एक ही तरीके से करनी चाहिए कि जो पूजा के कारण आज तक इतिहास में मनुष्यों को मिले हैं, हमको भी मिलने चाहिए। हमारे गुणों का विकास, कर्म का विकास, चरित्र का विकास और भावनाओं का विकास होना चाहिए। देवत्व इसी का नाम है। देवत्व अगर आपके पास आएगा तो आपके पास सफलताएँ आवेंगी। हिन्दुस्तान के इतिहास पर दृष्टि डालिए, उसके पन्ने पर जो बेहतरीन आदमी दिखाई पड़ते हैं, वेे अपनी योग्यता के आधार पर नहीं, अपनी विशेषता के आधार पर महान् बने हैं। महामना मालवीय जी का उदाहरण सुना है आपने, कैसे शानदार व्यक्ति थे वे। उन पर देवताओं का अनुग्रह बरसा था और छोटे आदमी से वे महान हो गए। विकास होना चाहिए। देवत्व इसी का नाम है। देवत्व अगर आपके पास आएगा तो आपके पास सफलताएँ आवेंगी। हिन्दुस्तान के इतिहास पर दृष्टि डालिए, उसके पन्ने पर जो बेहतरीन आदमी दिखाई पड़ते हैं, वेे अपनी योग्यता के आधार पर नहीं, अपनी विशेषता के आधार पर महान् बने हैं। महामना मालवीय जी का उदाहरण सुना है आपने, कैसे शानदार व्यक्ति थे वे। उन पर देवताओं का अनुग्रह बरसा था और छोटे आदमी से वे महान हो गए।
मित्रो! भगवान जब पसन्न होते हैं तो वह चीज नहीं देते जो आप माँगते हैं। फिर क्या चीज देते हैं ? वह चीज देते हैं, जिससे आदमी अपने बलबूते पर खड़ा हो जाता है और चारों ओर से उसको सफलताएँ मिलती हुई चली जाती हैं। सारे के सारे महापुरुषों को आप देखते चले जाइए, कोई भी आदमी दुनिया के पर्दे पर आज तक ऐसा नहीं हुआ है , जिसको दैवी-सहयोग न मिला हो, जिसको जनता का सहयोग न मिला होे, जिसको भगवान् का सहयोग न मिला हो। ऐसे एक भी आदमी का नाम आप बतलाइए जिसके अन्दर से विशेषताएँ पैदा न हुई हों जिनसे आप दूर रहना चाहते हैं, जिनसे आप बचना चाहते हैं। जिनके प्रति आपका कोई लगाव नहीं है। वे चीजें जिनको हम आदर्शवाद कहते हैं, सिद्धान्तवाद कहते हैं, दुनिया के हिस्से का हर आदमी जिसको श्रेय भी मिला हो, धन भी मिला हो। जहाँ आदमी को श्रेय मिलेगा वहीं उसे वैभव भी मिले बिना रहेगा नहीं। सन्त गरीब नहीं होते। वे उदार होते हैं और जो पाते हैं -खाते नहीं, दूसरों को खिला देते हैं। देवत्व इसी को कहते हैं।


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