हम स्वावलंबी बन जाएँ

Posted on 20-May-2015 01:53 PM




जो तैरना जानता है, वही दूसरों को डूबने से बचा सकता है। जिसकी खुद की आँखों पर गलत धारणाओं की पट्टी बँधी हो, वह किसी दूसरे की पट्टी कैसे देख सकता है या खोल सकता है ? एक उदाहरण से हम इस बात को ज्यादा अच्छी तरह से समझ सकते हैं।
एक लकड़हारा आँखों पर पट्टी बाँधकर बड़ी मेहनत और लगन से दिन भर लकडि़याँ काटता है। हम जानते हैं कि अगर वह अपनी आँखों पर बँधी पट्टी हटा दे तो उसका काम बहुत आसान हो जाएगा। लेकिन वह यह बात मानने और समझने को तैयार ही नहीं है। वह कहता है, ’मेरे पास बहुत काम है, पट्टी निकालने का भी समय नहीं है।’ वह यह समझ ही नहीं पाता कि पट्टी निकालने के बाद वह पहले से कई गुना ज्यादा काम कम समय में कर पाएगा।
इसी तरह कहीं हमने भी तो अपनी आँखों पर पट्टी नहीं बाँध रखी है ? यह जाँचे। यह पट्टी है ’मान्यताओं की, कल्पनाओं की, अज्ञान की, बेहोशी की।’ इन पट्टियों की वजह से ही हम जीवन में आशा-निराशा, सुख-दुःख, सफलता- असफलता में विभाजित जीवन जी रहे हैं। यदि हम ये पट्टियाँ उतार फेंकें तो हमारे काम जल्दी और आसानी से भी होंगे। लेकिन इसके लिए हमें यह पता होना चाहिए कि हमारी आँखों पर पट्टियाँ बँधी हैं और वे हमारे काम में बाधा डाल रही हैं। जाग्रति का उद्देश्य यही है कि विश्व के हर इंसान की आँखों पर बँधी पट्टी (बेहोशी) हट जाए और हर इंसान ’जवान’ बन जाए। अब समय आ चुका है कि हम सत्य की मशाल जलाकर प्राकृतिक जीवन जाएँ। 


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