Posted on 20-May-2015 10:30 AM
प्रकाश की गति से भी तेज है मन की गति। मन की क्षमता तथा शक्ति हमारे तन की शक्ति से भी कई गुना बढ़ कर है। इसलिये तो कहा जाता है कि
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
ये मन ही मनुष्य को मानव बनाता है। यही दानव बनाने की शक्ति भी रखता है। मन ही जीवन को स्वर्ग या नर्क बनाने की क्षमता रखता है। मन में उठने वाले विचारों व संकल्पों का हमारे स्वास्थ्य से गहरा सम्बन्ध है। शरीर तभी स्वस्थ रह पाता है जब हमारा मन शुद्ध व स्वस्थ हो। अस्वस्थ मन खराब विचारों द्वारा हमारे आचरण को दूषित करके स्वास्थ्य को खराब करने का कारण बनता है। मन में जो कल्पनाएं उठ कर मिट जाती है वे हमारे मन मस्तिष्क को अधिक प्रभावित नहीं करती। लेकिन जो कल्पनाएं बार-बार उठती है वे विचार रूप में परीणित हो जाती है और विचार दृढ़ होने पर संकल्प बनता है और संकल्प के आचारण में आने पर कर्म बन जाता है। यही कर्म जब फलित होता है तो भाग्य कहलाता है। हम जो परिणाम भुगतते है उसका मूल आधार हमारा मन ही है।
हमारा मन जो सोचता है, जैसे विचार करता है, हम वैसे ही निर्मित होते है। मन की सहायता के बिना न तो बुद्धि ही ठीक कार्य कर पाती है और न ही इन्द्रियाँ अपने विषयों से सम्बन्ध रख पाती है। मन कहीं और तो कान कहीं ओर। आँखें खुली होने पर भी कभी कभी हम देख नहीं पाते। इच्छाएं शुभ है या अशुभ इसका निर्णय मन नहीं कर पाता।
यह तो तेज गति से दौड़ने वाले घोड़े की तरह बे लगाम होता है। जिसकी लगाम होता है विवेक। जीवन में विवेक (बुद्धि) द्वारा किये गये निर्णयों से जो कर्म किये जाते है वहीं हमारी जीवन यात्रा को स्वस्थ्य सुखी तथा प्रसन्नता युक्त रखता है। जीवन में बुद्धि के इस महत्व के कारण ही गायत्री महामन्त्र में परमात्मा से बुद्धि को शुभ मार्ग पर चलने की प्रार्थना की गई है।
परम शक्ति परमात्मा, सदा हमारे साथ।
वही सुखी सम्पन्न है, बिरला जाने बात।।
एक किवदन्ती कहती है - विनाश काले विपरीत बुद्धि। जब आदमी का विनाश का समय आता है तो उसकी बुद्धि उल्टी हो जाती है। वो अविवेक पूर्ण निर्णय लेने लगता है। पहले मन अस्वस्थ होता है फिर तन।
इस तन का रोगी होना मन की अभिव्यक्ति है। इसी के कारण देह भीतर कोशिकाएं प्रभावित होती है। इनके मन माने ढंग से बढ़ने पर ही भयानक रोगों का सामना करना पड़ता है। जैसे उत्तम विचारों से मन स्वस्थ होता है उसी तरह पौष्टिक आहार से तन स्वस्थ होता है। अतः स्वास्थ्य की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को अपनी बुद्धि, मन तथा विवेक पर नियऩ्त्रण रखना चाहिये।
धैर्य, समय और प्रकृति, चाराघर सम होय।
दुःख संकट और रोग सब, निकट न आवे कोय।।