Posted on 05-Jun-2016 09:53 AM
’स’ और ’त’ इन दो अक्षरों से बना है ’सत्य’। ’स’ यानी बाहर की दुनिया का सत्य। जैसे नाक के साथ सुगंध, आँख के साथ दृश्य, कान के साथ ध्वनि, जुबान के साथ स्वाद, त्वचा के साथ स्पर्श, मन के साथ विचार। आज तक सिर्फ ’स’ को ही जाना गया है इसलिए लोग सत्य का असली अर्थ नहीं समझ पाए। अब ’त’ शब्द की गहराई भी समझेंगे। ’त’ यानी ’तेज तत्व।’ तेज यानी अर्क। ’तेज’ हमारा मूल अस्तित्व है। जैसे शक्कर का मूल तत्व है मिठास, पानी का मूल तत्व है गीलापन, वैसे ही हमारा मूल तत्व है ’स्वसाक्षी।’ हम अपने आपसे कभी यह सवाल ही नहीं पूछते कि ’हमारा मूल तत्व क्या है?’ क्या हमने कभी चेतन होकर इस बारे में सोचा है? क्या खुद को कभी चखकर देखा है, अपना स्वाद कभी लिया है, अपने होने के अनुभव को कभी जाना है? जिन्होंने अपना स्वाद लिया वे स्वर्ग में हैं। हमारा मूल तत्व है, तेज सत्य पाना। स्व के अर्क में स्थापित होना यानी स्वर्ग में स्थापित होना। नरक यानी ’न अर्क’, जो स्वयं से वंचित है। जो स्वयं से दूर हुआ वह नरक में है। जिन्होंने भी ये शब्द बनाए, उन्होंने स्वयं को जाना था, सच्चे सोने को पहचाना था।