Posted on 13-May-2015 02:03 PM
भगवान को अपना न मानने से तो हम भक्ति से दूर हो गए और संसार को अपना मानने से हम बन्धन में पड़ गए। अब जब बन्धन में पड़ गए, भक्ति से दूर हो गए तो जीवन में अनेक प्रकार के दोषों की उत्पत्ति हो गई, अनेक प्रकार के अभावों की उत्पत्ति हो गई।
उस अभाव को, उन दोषों को मिटाने के लिए यह बात सामने आई कि भाई, अब तो सत्संग करो यानि जो सत्य है, उसको स्वीकार करो। तो सत्य क्या है ? कि पर्सनल कुछ नहीं है, जो कुछ है यूनिवर्सल है, पर्सनल नहीं है। इसको जीवन में ढालोगे कैसे ? कि मेरा कुछ नहीं है।
जिस वाणी से बोलता हूँ वह मेरी नहीं है, जिन कानों से सुनता हूँ, वे मेरे नहीं हैं। अच्छा जो चीज अपनी नहीं है, उसका नाजायज इस्तेमाल मत करो, जो चीज अपनी है उसके सही इस्तेमाल का फल मत चाहो। क्योंकि अपनी कोई चीज है नहीं तो फल किस बात का चाहते हो भाई। चाहो भी मत और नाजायज इस्तेमाल भी मत करो। एक का नाम कत्र्तव्य विज्ञान है, एक का नाम अध्यात्म विज्ञान है।
अध्यात्म विज्ञानी कौन है ? जिसे कुछ नहीं चाहिए, वह अध्यात्म-विज्ञानी है और