पूजा प्रतिष्ठा (मूर्ति पूजा) का महत्व

Posted on 05-May-2015 02:50 PM




मूर्ति पूजा प्राचीन काल से ही हमारे आर्यावृत में धर्म मार्ग का आलम्बन रहा है। चित्त को एकाग्र कर, अपने मन को परमात्मा में लगाने का पावन माध्यम मन्दिर और उनमें प्रतिष्ठित प्रभू की प्रतिमाएं होती है।
    आपने देखा और सुना भी होगा कि जहां कहीं भी मन्दिर निर्माण होकर उसमें परमात्मा की प्रतिष्ठा की जाती है।
उत्सवमय 
वातावरण में प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है और उसी को हम अपना आदर्श या इष्ठदेव मान कर जीवन में उन्नत मार्ग पर चलते रहते है। जिन्होंने लोक कल्याण के कार्य किये है। समाज तथा जनता के लिये त्याग किया है। जिन्हे हम अपना आदर्श मानते है। जिन्हें हम अक्सर याद करते है। उन महान व्यक्तित्वों के दर्शन, वन्दन और पूजन कर आगे बढ़ते रहते है। प्रतिपल उन्हें हम अपने समक्ष उपस्थित मानते है कि वे महान आत्माएं हमारा मार्ग दर्शन कर रही है। आध्यात्म पथ पर ध्यान का बड़ा महत्व है।
    ध्यान के लिये एकान्त चाहिये और मन्दिर से अधिक एकान्त स्थान गृहस्थियों के लिये और क्या हो सकता है।
    मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरूद्वारा आदि ये सभी स्थान आराधना स्थल कहे जाते है। जहां व्यक्ति परमात्मा से जुड़ने का प्रयास करते है। तब विवेक के रूप में ईश्वरीय प्रकाश को हम अपने अन्तःकरण में अनुभव कर सकते है। इन मन्दिरों के माध्यम से समाज में सत्प्रवृत्तियां फैलती रहे। समाज के लिये मन्दिर और प्रतिमाएं एक प्रकाश स्त्म्भ की तरह है।
    समर्थ गुरु रामदास जी ने महाराष्ट्र भर में लगभग 800 हनुमान मन्दिर बनवाए। ईश्वर की पूजा अक्षत या रोली से नहीं-वरन सत्कर्मो से होती है। 
    एक आदर्श व्यक्ति की याद सदियों तक सत्प्रेरणा का माध्यम बन जाती है। महात्मा गांधी ने भारत की आजादी में अपना बलिदान दे दिया। 


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