Posted on 08-May-2015 02:06 PM
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि शाम या रात से संबंधित अधिकांश मान्यताएँ उन दिनों बनी थी, जब बिजली का आविष्कार नहीं हुआ था। प्रकाश के लिए दीपक जलाए जाते थे, जिनका प्रकाश बहुत ही मंद होता था। रात में झाडू लगानेे से यह नहीं दिखता था कि धूल के कण कहाँ उड़ रहे हैं और कहाँ कचरा छूट गया है। यही बात कचरे को बाहर फंेकने पर भी लागू होती है। फंेकनेवाली जगह पर कौन सी वस्तु या इंसान है, यह उस समय नजर नहीं आता था। अगर वहाँ कोई भिक्षु, साधु या पशु बैठा हो तो उन पर कचरा डालने से उन्हें नुकसान हो सकता था, या उन्हें बुरा लग सकता था। इसके अलावा यह भी नजर नहीं आता था कि कचरे में घर की कोई कीमती चीज तो नहीं जा रही है। इसी वजह से यह मान्यता बनाई गई कि रात को झाडू नहीं लगानी चाहिए और कचरा बाहर नहीं फेंकना चाहिए। धूल के कण कहाँ उड़ रहे हैं और कहाँ कचरा छूट गया है। यही बात कचरे को बाहर फंेकने पर भी लागू होती है। फंेकनेवाली जगह पर कौन सी वस्तु या इंसान है, यह उस समय नजर नहीं आता था। अगर वहाँ कोई भिक्षु, साधु या पशु बैठा हो तो उन पर कचरा डालने से उन्हें नुकसान हो सकता था, या उन्हें बुरा लग सकता था। इसके अलावा यह भी नजर नहीं आता था कि कचरे में घर की कोई कीमती चीज तो नहीं जा रही है। इसी वजह से यह मान्यता बनाई गई कि रात को झाडू नहीं लगानी चाहिए और कचरा बाहर नहीं फेंकना चाहिए।