Posted on 28-May-2015 03:43 PM
दुनिया के सभी प्राणियों में मनुष्य शारीरिक रूप में सबसे कमजोर है। आदमी चिडि़या की तरह उड़ नहीं सकता, तेंदुए से तेज दौड़ नहीं सकता, एलीगेटर की तरह तैर नहीं सकता, और बंदर की तरह पेड़ पर चढ़ नहीं सकता। आदमी की आँख चील की तरह तेज नहीं होती, न ही उसके पंजे और दाँत जंगली बिल्ली की तरह मजबूत होते है। जिस्मानी तौर पर आदमी बेहद लाचार, और असुरक्षित होता है। वह एक छोटे से कीड़े के काटने से मर सकता है। लेकिन कुदरत समझकर और दयालु है। उसने इंसान को जो सबसे बड़ा तोहफा दिया है, वह है सोचने की क्षमता। इंसान अपना माहौल खुद बना सकता है, जबकि जानवरों को माहौल के मुताबिक ढलना पड़ना है।
दुख की बात है कि कुदरत के इस सबसे बड़े तोहफे का पूरा इस्तेमाल बहुत कम लोग कर पाते है।
असफल लोग दो तरह के होते हैं- वे जो करते तेा हैं लेकिन सोचते नहीं; दूसरे वे जो सोचते तो हैं लेकिन कुछ करते नहीं। सोचने की क्षमता का इस्तेमाल किए बिना जिंदगी गुजारना वैसा ही है, जैसे कि बिना निशाना लगाए गोली दागना।
जिंदगी उस रेस्तरां (कैफेटिरिया) की तरह है जहाँ हमको खुद सर्विस करनी पड़ती है। वहाँ हम अपनी ट्रे उठाते हैं, खाना चुनते हैं, और उसका भुगतान करते हैं। अगर हम कीमत चुकाने को तैयार हैं, तो वहाँ से कोई भी चीज ले सकते हैं। अगर हम कैफेटेरिया मेें किसी के आ कर खाना परोसने का इंतजार करेंगे, तो इंतजार ही करते रह जाएँगे। जिंदगी भी वैसी ही है। हम चुनाव करते हैं, और फिर कामयाब होने के लिए कीमत चुकाते हैं।