Posted on 12-May-2015 03:17 PM
ंऊँ....
आत्र्त स्वरों को दे सकें, राहत के दो बोल।
मिल जाएगा है प्रभू, श्वासों का सब मोल।।
नारायण ! नारायण ! नारायण !
यह पंक्तियाँ जब प्रथम बार मैंने सुनी तो मेरी आँखों में बहुत आँसू आए। बार-बार लगा कि हम बहुत बार आहत हुए हैं। आहत अर्थात् दुःखी। हमने बहुत पुकार की है, हमें सहायता चाहिए। कभी धन की पुकार, कभी स्वास्थ्य की पुकार, कभी मन की खुशियों की पुकार। हमने अपने लिए तो माँग लिया।
एक बार एक व्यक्ति ने प्रार्थना की कि हे भगवान् ! जब मैं सुखी था तब समुद्र तट पर आपके और मेरे चरण चिन्ह् दिखाई दिए और आज जब मैं दुःखी हुआ तो मुझे, सिर्फ मेरे ही चरण दिख रहे हैं। आपने मुझे छोड़ दिया ? जब मैं आहत हुआ तो क्या आपने राहत नहीं दी। आपने श्वासों का मोल नहीं दिया। भगवान ने कहा लाला, तुझे मैंने गोद में उठा रखा था। वह एक ही चरण चिन्ह् मेरे थे। हम आत्र्त स्वरों को दे सकें राहत अर्थात् सहायता। सहायता सिर्फ धन की ही नहीं होती अपितु किसी को मधुर बोल देकर भी होती है। एक बार किसी ने मुझसे कहा कि बाबुजी ! मैं बहुत भूखा हूँ, कुछ हो सके तो दे दोगे क्या ? कृपा करो ना बाबुजी। तब मैंने अपनी जेब में हाथ डाला पर बटुआ घर पर रह गया था। तो मैंने उस व्यक्ति को कहा कि बाबू, मेरी देने की तो बहुत इच्छा है। मैं चाहता हूँ तुम्हें राहत पहूँचा दूँ लेकिन माफ करना बाबू क्योंकि आज तो मैं अपना बटुआ नहीं ला पाया, वो व्यक्ति रो दिया। मैंने कहा मैंने नहीं दिया तो तुम रो दिये। वह बोला नहीं बाबुजी आज मैं पहली बार खुशी के आँसू रोया हूँ। हर बार पहले दुःख से रोया था क्योंकि किसी ने मुझे झिड़कियाँ दी तो किसी ने धिक्कारा, लेकिन आपने पहली बार इतनी मिठास से मुझसे बोला है।
ये मिठास कहीं से मोल नहीं माँगी ना ही खरीदी है। अभी दोहे में आया था श्वासों का सब मोल। मैं सुबह से चिंतन में था कि क्या होगा श्वासों का मोल ? कुछ रुपयों से भी एक श्वास उधार नहीं मिलती है। ठाकुरजी ने कृपा कर हमें मनुष्य जीवन दिया है। इसी जीवन में, अभी के समय में ही हमें आत्र्त लोगों को राहत अर्थात सहायता पहुँचाने का कार्य करना चाहिए।