Posted on 13-Jun-2015 02:16 PM
दिव्य क्राइस्ट, हमारे अंदर आपकी चेतना को पुनर्जीवित करें। हम आपकी अनन्तता को अपने अंदर व अपने से बाहर जान पाने में सक्षम हो। जैसा कि स्वयंभू प्रभु पवित्रात्मा में पुर्नजीवित हैं, वैसे ही हम भी अज्ञान के मकबरे से ज्ञान के अनन्त प्रकाश में जाग्रत हों। हम आशा करते है कि हमारी आत्मा ईश्वर में जाग्रत हो। लिली और सितारों में ईश्वर विद्यमान हैं। हे परमपिता, आपके लिए हमारी आकांक्षाओं को जाग्रत करें। हे परमपिता, हमारे भटके हुए विचाररूपी जहाज के प्रकाश स्तम्भ बन जायें।
हमें ध्यान के महासागर में गहन सेे गहनतर गोता लगाना सिखलायें। यदि एक या दो या कई गोते लगाकर भी हम ईश-संपर्क रूपी मोती नहीं पाते, तो हम यह न कह सकें कि ध्यान के महासागर में प्रभु उपस्थित नहीं है, हम अपनी कम गहराई के गोते लगाने की गलती को ढंूढ़ लें व अपने ध्यान की सतत वृति में अडिगता से लगे रहें। हमें गहन से गहनतर ध्यान की समाधि में गोता लगाना सिखलायें जब तक कि हम प्रभु को न पा लें। हे पवित्रात्मा, आपके मंदिर आकाश में हैं, हमारी आत्मा में व हमारे विचारों मंे भी आपके मंदिर हों, वहां पर आप हमारी आत्मा के आनन्द को स्वीकार करें। ज्ञान के दरवाजे खोलें। हमारी दृष्टि पर पड़े हुए अंधकार के पर्दे को नष्ट करें। हमंे ज्ञान कराये कि हमेशा ही ईश्वर हमारे है। हमारे शरीरों को आपकी शक्ति से व हमारी आत्माओं कोे आपके आनन्द से पुनः आपूरित करें।
द्वारा - श्री श्री परमहंस योगानन्द जी