Posted on 24-May-2015 04:05 PM
यह एक मात्र सन्देश है, जो महावीर ने बारह वर्ष की दीर्घकालीन तपस्या से पाया। चाहे पशु हो, पक्षी हो, कीड़ा-मकोड़ा हो, अपना हो, पराया हो, इस देश का हो या किसी अन्य देश का हो, जीव मात्र, प्राणी मात्र के प्रति भगवान् महावीर की करूणा थी, उनके लिए बस एक ही भावना थी- ‘तुम जिओ और सभी को जीने दो‘।
एक बार महावीर भगवान् एक रास्ते से गुजर रहे थे। लोगों ने उनसे मना किया कि इस रास्ते पर न जाएँ। आगे एक भयानक जंगल है, जिसमें एक विषैला सर्प रहता है। महावीर उसी रास्ते से चले। सर्प मिला। उसने उन्हें पैर में काट लिया। कहते हैं कि उनके पैर से दूध की धारा निकल पड़ी। सर्प सोच में पड़ गया, मेरे बुरा करने पर भी इन्होनें मेरा बुरा नहीं किया। दूध के जैसा रक्त महावीर की सभी प्राणियों के प्रति करूणा के कारण था। सर्प उनकी महानता से इतना प्रभावित हुआ कि उसने लोगों को काटना छोड़ दिया। परिणाम स्वरूप लोगों ने उसे निविर्ष