Posted on 22-May-2015 03:34 PM
’तुम्हारी पेंटिंग बिकेगी कि नहीं ?’ तब वह अपने मन को क्या कहे ? ’अभी चुप बैठ! पहले पेंटिंग बन जाये, जब बेचने जायेंगे तब बेचने का काम करेंगे, अभी बनाने का काम कर रहे हैं तो बनायेंगे। जब जो काम होगा तब वह करेंगे।’इस तरह दुःख के कारणों की समझ पाकर आप वर्तमान में रहना सीख जायेंगे। दुःख दर्शन से पिछली गलतियों का असर जो आपकी आज की जिंदगी पर , अपराध बोध की वजह से हो रहा है, वह दूर हो जायेगा तथा आने वाली जिंदगी के बोझ, जिसे आप अब लेकर घूम रहे हैं, वे हट जायेंगे।
दुःख देखना है तो पीछे देखें, सुख को आगे देखें और यदि इन दोनों से परे सच्ची खुशी चाहिए तो वर्तमान में देखें। वर्तमान में एक गलती करने से सदा बचें, जो है, ’सबको अपना दुःखड़ा बताते फिरना।’ यह आदत मिटाकर ही दुःख मुक्ति का निवारण सफल होगा।इंसान का मन वर्तमान में नहीं रहना चाहता। वह हमेशा भूत और भविष्य में कलाबाजियाँ लगाता है। दुःख का स्थान भूत और भविष्य में है लेकिन भूत गुजर चुका है, जो मात्र अब याद्दाश्त में है और भविष्य आया नहीं है, जो मात्र कल्पना में है। अतः वर्तमान ही सत्य है। इसी वर्तमान में उज्ज्वल भविष्य का निर्माण होता है। जो लोग यह कला सीख जाते हैं, वे हर समस्या में वर्तमान की फिक्र करते हैं, किसी भी तरह का समाचार आ जाये, वे वर्तमान में जो कर रहे हैं, वही काम करते हैं और वह काम खत्म होने पर ही दूसरा काम शुरू करते हैं।
जैसे एक इंसान पेंटिंग कर रहा है तब उसका मन बार-बार आकर कहता है,