Posted on 11-May-2015 11:54 AM
क्या आपने कभी सोचा है कि हम सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए क्यों हैं ? आमतौर पर तो यही कहा जाता है कि हम एक दूसरे से इसलिए जुड़े हुए हैं, क्योंकि हम एक-दूसरे की ज़रूरत होते हैं। हम एक-दूसरे से इसलिए जुड़े हुए हैं, क्योंकि हम एक-दूसरे को चाहते हैं, लेकिन यदि इसी बात को थोड़ा-सा फैलाकर थोड़े से विस्तार के साथ कहा जाए, तो हमारा उत्तर यह होगा कि हम एक-दूसरे से इसलिए जुड़े हुए हैं, क्यांेकि हमारे पास संवेदनाएँ हैं। संवेदना का मतलब है-समान वेदना का अनुभव करना। यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि यहाँ समान सुख के अनुभव की बात नहीं कही गई है, बल्कि समान वेदना के अनुभव की बात कही गई है। हो सकता है कि मेरा पड़ोसी जिस सुख का अनुभव कर रहा हो, मैं उस सुख का अनुभव नहीं कर पा रहा हूँ। हम दोनों के अनुभव में फ़र्क हो सकता है, लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए कि यदि पड़ोसी दुःख का अनुभव कर रहा है, वेदना का अनुभव कर रहा है, तो मुझे वेदना का अनुभव न हो। सुख हमें भले ही न जोड़े, लेकिन वेदना हमें जोड़ती है। इसलिए तो संवेदना को इतना बड़ा गुण माना गया है। यदि यही नहीं रह गया, तो फिर हमारे पास रह ही क्या जाएगा ? मनुष्य ही तो एक ऐसा प्राणी है, जो अपने ही दुःख से नहीं, बल्कि दूसरों के दुःख से भी दुःखी होता है। यही कारण है कि उसे केवल अपने ही दुःखों को दूर करने में नहीं लगा रहना चाहिए, बल्कि उसे दूसरों के दःुखों को भी दूर करने की हर संभव कोशिश करना चाहिए। इसे ही हमारे यहाँ सेवा करना कहा गया है, जिसे ईश्वर की आराधना का दर्जा दिया गया है। दुखियों की सेवा यानी कि ईश्वर की सेवा।
इसका एक बहुत महत्वपूर्ण पक्ष जो है-वह यह है कि जिन कारणों से हमें दुःख होता है, उन्हीं कारणों को हम जन्म न दें, ताकि अन्य लोगों को दुःख न हो, बल्कि इससे भी बढ़कर यह कि यदि हमें मौका मिले, तो हम ऐसे लोगों को सुख देने की कोशिश करें। हम अपनी संवेदनाओं को इतना फैला दें, इतना बढ़ा दें कि वह संपूर्ण जीव-जगत तक फैल जाए।