Posted on 18-May-2015 12:46 PM
जिसे आत्मसुझाव द्वारा विकसित किया जा सकता है
युगों-युगों से धर्मावलंबी संघर्षरत मानवता को यह संदेश देते रहे हैं कि उन्हें इस या उस धार्मिक सिद्धांत में “आस्था रखनी” चाहिए, परंतु वे लोगों को यह बताने में असफल रहे हैं कि आस्था को किस तरह से पैदा किया जाए। उन्होंने यह नहीं बताया कि “आस्था एक मानसिक अवस्था है जिसे आत्मसुझाव द्वारा विकसित की जा सकता है।’’
ऐसी भाषा में जिसे एक आम आदमी समझ सके हम वह सिद्धांत बनाएँगे जिसके द्वारा आस्था वहाँ पर विकसित की जा सकती है जहाँ पर अभी इसका अस्तित्व नहीं है।
अपने आपमें आस्था रखें; परमपिता में आस्था रखें।
इसके पहले कि हम शुरू करें आपको एक बार फिर यह याद दिलाना जरूरी है।
आस्था ही वह “अमृत” है जो विचार के आवेग को जीवन, शक्ति और क्रियाशीलता प्रदान करता है।
पिछला वाक्य दुबारा पढ़ने लायक है और तीसरी बार, और चैथी बार भी। यह जोर से पढ़ने लायक है!
आस्था धन कमाने का शुरुआती बिंदु है!
आस्था उन सभी “चमत्कारों” और सभी रहस्यों का आधार है जिन्हें विज्ञान के नियमों के आधार पर स्पष्ट नहीं किया जा सकता!
आस्था असफलता का इकलौता इलाज है!
आस्था वह तत्व, वह “रसायन” है जिसे जब प्रार्थना के साथ मिलाया जाता है तो इंसान अनंत प्रज्ञा के साथ सीधा संवाद करता है।
आस्था वह तत्व है जो इंसान के सीमाबद्ध मस्तिष्क द्वारा निर्मित विचारों के आम कंपनों को आध्यात्मिक समतुल्य में रूपांतरित करता है।
आस्था इकलौता माध्यम है जिसके द्वारा इंसान अनंत प्रज्ञा की वैश्विक शक्ति का दोहन औश्र प्रयोग कर सकता हैं।