Posted on 12-Jun-2015 02:15 PM
लोक-कल्याण की भावना, हमारे जीवन का लक्ष्य है, पीडि़तों, असहायों, निर्धनांे, विकलांगों की सेवा, यही है, लोक कल्याण, आज के भौतिकतावादी और अर्थवादी युग में, अर्थ के बिना, लोक-कल्याण के कार्यों में, रूकावटें आती हंै इन रूकावटों को समर्थ और सम्पन्न, महानुभावों द्वारा, उदार दान- सहयोग से दूर किया जा सकता है। असहायों, निर्धनांे, विकलांगों की सेवा, यही है, लोक कल्याण, आज के भौतिकतावादी और अर्थवादी युग में, अर्थ के बिना, लोक-कल्याण के कार्यों में, रूकावटें आती हंै इन रूकावटों को समर्थ और सम्पन्न, महानुभावों द्वारा, उदार दान- सहयोग से दूर किया जा सकता है। ”मरूस्थल्यां यथावृष्टि: क्षुधार्ते भोजनं तथा।
दरिद्रे दीयते दानं सफलं तत् पाण्डुनन्दन“।।
मरूस्थल में होने वाली वर्षा सफल है, भूखे को दिया गया दान सफल है, और दरिद्र निर्धन की सेवा के लिए दिया गया दान सफल है, आपका यह संस्थान एक-एक मुट्ठी आटे से, विगत 30 वर्षाें से यही कर रहा है। हजारों विकलांग बन्धुओं को, सभी प्रकार से सम्पूर्ण निःशुल्क सेवा से, अपने पैरों पर खड़ा किया, उन्हें चलने योग्य बनाया, जो पहले चारों हाथ-पैरों पर अपने जीवन का बोझ, उन्हें रोजगार परक व्यवसायों में प्रशिक्षण दिया, स्वावलम्बी बनाया, उनके विवाह सम्पन्न करवाये, उन्हें गृहस्थ जीवन का सुख दिया, और भी अनेक लोक-कल्याण के प्रकल्प, यह है सूत्र रूप में नारायण सेवा। अपने जीवन का बोझ, उन्हें रोजगार परक व्यवसायों में प्रशिक्षण दिया, स्वावलम्बी बनाया, उनके विवाह सम्पन्न करवाये, उन्हें गृहस्थ जीवन का सुख दिया, और भी अनेक लोक-कल्याण के प्रकल्प, यह है सूत्र रूप में नारायण सेवा।