यदि आफिस में कोई कामचोर हो तो दूसरों को उसकी देखा देखी उसके प्रभाव में नहीं आना चाहिए। संस्थान में काम करने वाले हर व्यक्ति को अपनी अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। इस बात के मायने नहीं होते कि बाहर क्या हो रहा है या बाहरी स्थितियों का कार्यक्षमता पर कोई नकारात्मक असर नहीं
कैंची वस्त्र को फर्राटे से काटे जा रही थी। वस्त्र ने नम्रभाव से धीमी आवाज में कैंची से पूछा - “बहिन मेरा अंग-प्रत्यंग विच्छिन्न क्यों कर रही हो ?” मुस्कराती हुई कैंची ने प्रत्युत्तर दिया - दूसरों की भलाई के लिए, उनके अंग की रक्षा के लिये और उनकी शोभा एवं मान
पूरे समुद्र का पानी भी एक जहाज को नहीं डुबो सकता जब तक पानी को जहाज अन्दर न आने दे। इसी तरह दुनिया का कोई भी नकारात्मक विचार आपको नीचे नहीं गिरा सकता जब तक कि आप उसे अपने अन्दर आने की अनुमति न दे दें।
जिस देह को, जिस नाम को, जिस नाम तथा देह के संबंध को सच्चा मानकर आप विपत्ति से घबराते हो वह देह नाम और संबंध सब आरोपमान है, इस जन्म से पहले भी आपका नाम रूप और संबंध था परंतु आज उससे आपका कोई सरोकार नहीं है, यही हाल इसका भी है, फिर विपत्ति से घबराना तो मूर्खता ही है क्यों
आयुर्वेदानुसार सूर्यास्त से पूर्व भोजन कर लेना चाहिए। जैन धर्म में तो इस नियम का सबसे ज्यादा महत्व है। हालांकि हिन्दू और जैन धर्म में भोजन करने के कई नियम तय किए गए हैं जैसे कि भोजन के पूर्व पानी पिया तो उत्तम, बीच में पीया तो मध्यम और बाद में पिया तो निम्नतम माना गया है। पूर्व भी लगभग आधा घंटा प
हमें यह बात हमेशा ध्यान में रखना चाहिए कि मन का परमात्मा के साथ घनिष्ठ संबंध है। मन और ब्रह्म दो भिन्न वस्तुएं नहीं हैं। ब्रह्म ही मन का आकार धारण करता है। अतः मन अनंत और अपार शक्तियों का स्वामी है। मन स्वयं पुरुष है एवं जगत का रचयिता है। मन के अंदर का संकल्प ही बाह्य जगत में नवीन आकार ग्रहण करता
आपने यह कहावत ज़रूर सुनी होगी - ’लीक छाड़ि तीनों चलें, शायर, सिंह, सपूत।’ यानी कि सच्चा कवि, शेर और सुपुत्र हमेशा बने बनाए रास्तों को छोड़कर नए रास्तों पर चलते हैं। ये वे लोग होते हैं, जो अपने लिए खुद रास्ता बनाते हैं और बाद में इनके बनाए गए रास्ते पर दुनिया चलती है। ऐसे लोगों
धन की प्राप्ति के उद्देश्य से कार्य करने पर मन संसार में रम जाता है, इसलिये सांसारिक कार्य बड़ी सावधानी के साथ केवल भगवत्प्रीति के लिए ही करना चाहिये। इस प्रकार से भी अधिक कार्य न करें, क्योंकि कार्य की अधिकता से उद्देश्य में परिवर्तन हो जाता है। सांसारिक पदार्थों और मनुष्यों से मिलना-जुलना कम रखन
मानसिक दासता ने हमें हर क्षेत्र में दीन-हीन और निराश-निरुपाय बनाकर रख दिया है। मानसिक मूढ़ता में ग्रसित समाज के लिए उद्धार के सभी द्वार बंद रहते हैं। प्रगति का प्रारंभ स्वतंत्र चिंतन से होता है। समृद्धि साहसी के पीछे चलती है। इन्हीं सत्प्रवृत्तियों का जनमानस में बीजारोपण और अभिवर्द्धन करना अपनी वि
एक समय में एक शक्तिशाली राजा राज्य करता था। एक झील उसके महल के चारों ओर फैली थी, साथ ही वहां एक सुंदर बाग भी था। उस झील में बहुत से सुनहरे हंस रहा करते थे। एक दिन एक बड़ी-सुनहरी चिड़िया उड़ती हुई उस झील तक आ पहुंची और पेड़ की डाल पर बैठकर चहचहाने लगी, वह झील में डेरा डालने की सोचने लगी, लेकिन हंसों स