Posted on 11-Aug-2015 02:18 PM
योग निद्रा का अर्थ है जागते हुए सोना। इसमें व्यक्ति जागृत रहते हुए सोता है। पूर्ण शिथिलन की अवस्था में ही योग निद्रा संभव है।हमने शरीर में, मन में इतनी उत्तेजना, इतना तनाव, इतनी फलाकांक्षा, इतनी आसक्ति इतनी व्यग्रता भर ली है कि हम अपने अस्तित्व की सहज अनुभूति खो बैठे है, योग निद्रा उस सहज अनुभूति को पा लेने का सरल उपाय है।
शिथिलीकरण से साधक शान्त होता है। साधक को अपनी यांत्रिकता पकड़ में आती है। साधक की वर्षों पुरानी आदत उसे दिखने लगती है। अर्थात् आदत के आवेग में बहते हुए उसे भान होने लगता है। व्यक्ति के होश की मात्रा इससे बढ़ती है। इस तरह हमें शान्ति का आभास होता है। शान्तचित्तता विश्राम का ही परिणाम है।
विश्राम से साधक को अपनी कमजोरियां प्रकट रूप से दिखने लगती हैं ताकि वह उन्हें मिटा सके। अपनी कमजोरियों का परिमार्जन करने का विश्राम से अवसर मिलता है।